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जैनहितोपदेव भाग है जो. चित्ते परिणतं यस्य, चारित्रमकुतोभयं ॥ . अखंडज्ञानराज्यस्य, तस्य साधोः कुतो भयं ॥ ८ ॥
॥ रहस्यार्थ ॥
१. जेने कोइनी कंइपण परवा नथी एवा एक सरखा उदासीन स्वभाववाळा महापुरुषने भय भ्रांति जन्य कष्ट परंपरा होयज केम? मध्यस्थ दृष्टि महापुरुष सदा निर्भय भयभ्रांतिथी मुक्तन रहे छे.
२. भारे भयथी भरेला संसार मुखथी शृं? तेथी सर्यु. भय अरेलु मुख ते दुःखरुपज छे. सर्वथा भय रहित सहज आत्मिक मुखज सुखरूप गणवा योग्य छे. आधि व्याधि अने उपाधि जन्य दुःखी भरेला संसारमा सुखमात्र नामनुंज छे. जन्म मरणथी मुक्त करे एवं खभाविक ज्ञान सुखज साचु छे.
३. सम्यग् ज्ञानवडे ज्ञेय-पदार्थने यथार्थ जोनार मुनिने भय राखवातुं प्रयोजन छे ? सहज सुखमा झीली रहेला मुनिने पुद्गलिक सुखनुं प्रयोजन नथी. पुद्गल उपरथी मूछो उठी जवाथी सहज निवृत्ति मुख संपजे छे,