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श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो. ............निश्चयो विरतितो, भक्तिश्च देवे गरा, बौचित्यादि गुणैरलंकृत तनुःसम्यक्त्व योग्यो भवेत२४
३ निर्मळ श्रध्धानकर.. तव श्रद्धायी संस्कार पामेला जीवोज साचा गणाय एम समयना जाण कहे छे, शुद्ध श्रद्धा दिनाना जीव तो केवळ पशु रुपज छे. एमां संशय नथी. समकितवंत .जीवना हाथमाज चिंतामणि रत्न छे, तेना आंगणामांज कल्पवृक्ष उन्यो छे. अने कामधेनु तो तेनी सहचारिणीज छे. जे सम्यकत्व भूषणथी भूषित छे तेनेज मुक्ति कन्या वरनारी छे, स्वर्ग लक्ष्मी तो तेने स्वयं आवी मळे छे. अने राजलक्ष्मीनुं तो कहेjज शुं ? समकीतवंत जीव सर्व रीते सुखीज थाय छे. समवित दृष्टि जीव त्रणे भुवनमां गमे त्यां पूजानिक थाय छे अने समषित गुण विनानो ते पगले पगले निंदापात्र बने छे. २२
“वीतराग प्रमुना एकांत हितकारी वचननुं सावधानपणे श्रवण करीने मां कृत्याकत्य, त्याज्यात्याज्य अने हिताहितना निर्णय पूर्वक श्रद्धा-आस्ता वेसवी तेनु नाम समकित छे." शंका, कंखा, फळ संदेह, मिथ्यात्विनी प्रशंसा, अने तेनो परिचय ए पांच दूषणों समक्तिचंतने दूर करवानां छे. अने शुद्ध देवगुरु तथा धर्म-तीर्थनी