________________
श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो.
१७७.
धर्मार्थी माणसे सत्य प्रिय थवानो अने सत्य - हितकारी वातनेज कहे वानो अथवा सांभळवानो ढाळ राखवो जोइये, आवा सत्यप्रिय अ... सत्यभाषक जीवथी खपरनुं हित सहेजे थाय छे तेथी तेवा गुणवाळाज धर्मरत्नने योग्य छे. विकथावंतथी उभयने हानि पहोंचे छे तेथी अयोग्य छे.
१४ जेनो परिवार अनुकूल वर्तनारो, धर्मशील अने सदाचारने सेववावाळो होय एवो जाडावळियो माणस निर्विघ्नपणे धर्मसाधनकरी शके छे. पूर्वोक्त स्वभाववाळा कुटुंबथी धर्मसाधनयां कंइ पण अंतराय आववानो संभव रहेतो नथी केमके एवं सानुकूळ कुटुंब तो. धर्मसाधनमा जोइये तेवी सहाय दइ शके छे. तेथी धर्मशील अने सदाचारवाळा अनुकूल परिवारवाळो धर्मने दीपाववाने योग्य गणीयछे वो प्रतिकूळ आचार विचारचाळा परिवारवाळो योग्य गणातो. नथी, केमके तेथी तो धर्म मार्गमां वखतोचखत विघ्न उभा थाय छे. माटे शुद्ध अने समर्थपक्षनी पण खास जरुर छे.
१५ दीर्घदर्शी माणस पूर्वापरनो अथवा लाभालाभनो विचार. करी जेनुं परिणाम सारंज आववानो संभव होय, जेमां लाभ वधारे अने क्लेश अल्प होय अने जे घणा माणसोने प्रशंसनीय होय तेवां कामनोज आरंभ करेछे, तेवा दीर्घदशींजनो धर्म रत्नने योग्य छे...
१२