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श्री जैनहितोपदेश भाग २ जो.
ते धर्मने योग्य नथी केमके तेवा निर्दय परिणामंवाळानुं सर्व अनुष्ठान निष्फळ थाय छे.
१९ मध्यस्थ एटले पक्षपात रहित एवो सौम्य दृष्टि पुरुष राग द्वेष दर तजीने शांत चित्तथी धर्म विचारने यथास्थित सांभळे छे अने गुणन स्वीकार तथा दोषनो त्याग करेछे माटे ते धर्मने लायक छे. परंतु पक्षपात युक्त बुद्धिवाळी माणम अंध श्रद्धाथी वस्तुतत्त्वनो यथास्थित विचारज करी शकतो नथी तो पछी गुणनो आदर अने दोषनो त्याग शी रीते करी शके ? तेथी पक्षपात बुद्धिथी एकांत ताण करी बेसनार धर्म रत्नने योग्य नथीज.
१२ गुणरागी माणस गुणवंतनुं वहु मान करे छे, निर्गुणनी उपेक्षा करेछे, सद्गुणनो संग्रह करे छे अने संप्राप्त गुणने सारी रीते साचवी राखे छे. प्राप्त थयेला गुणोने दोपित करतो नथी. तेथी ते धर्म योग्य छे. निर्गुण माणस तो वीजा गुणवंतने पण पोतानी जेवा लेखे छे तेथी ते नथी तो करतो तेमनी उपर राग के नथी क रतो गुण उपर राग. परंतु उलटो गुणद्वेषी होइ सद्गुणनो पण अनादर करे छे अने आत्म गुणने मलीन करी नांखे छे माटे ते धर्म रत्नने माटे अयोग्यज छे.
१३ विकथा करवाना अभ्यासवडे कलुषित मनवाळो माणस विवेक रत्नने खोइ देछे अने धर्ममां तो विवेकनी खास जरूर छे. तेथी