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१६४ श्री जैनहितोपदेश भांग २ जो. एज निश्चय धर्म छे. सत्ता रुपे तो ते सदा आत्मामां स्थित रहेलोज छे.
चारित्र-सत्ता रुपे रहेलो ते धर्म आत्माने उपकारी केम थइ शकतो नथी अने ते क्यारे अने शी रीते आत्माने उपकारी थइ शके छे ते समजावो?
सुमति-आत्मा अनादि कर्म कलंकथी कलंकित थयेलो होवाथी सत्ता मात्र रहेलो धर्म आत्माने सहायभूत थइ शकतो नथी. ज्यारे पूर्वोक्त व्यवहार धर्मनुं रुचि पूर्वक सेवन करवामां आवे छे त्यारे परिणामनी विशुद्धिथी जेटले जेटले अंशे कर्म मळना हठवाथी आत्म स्वभाव उज्वल थाय छे तेटले तेटले थशे प्रगट थयेला सत्तागत धमेथी आत्माने सहज उपगार थायज छे. यावत् शुद्ध व्यवहार धर्मना संपूर्ण वळथी ज्यारे धनघाति कर्म मळनो क्षय थइ जाय छे, त्यारे तो अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र अने अनंत वीर्य रुप सहज अनंत चतुष्टयी प्रगटे छे. तेथी आत्मा सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, संपूर्ण सुखी अने सर्व शक्तिवंत थाय छे.
चारित्र-व्यवहार धर्म क्यां मुधी कही शकाय छे ते समजावो?
सुमति-ज्यां सुधी पूर्वे कहेला पांचे प्रमादना परिहार वडे सम्यग् ज्ञान, दर्शन, अने चारित्रनी सहायथी राग, द्वेष अने मोहादि