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श्री जैनहितोपदेश भाग-२ जो. दोषने नीरखी सुधारवानी सारी टेव पडवायी आत्मामां गंभीरता नामे सद्गुण प्रगट थाय छे.
रुपं निधि-पांचे इंद्रियो परवडी अने देह नीरोगी होवाथी शरीरसौष्टव गुण लाभे छे. विषय लोलुपता तजीने मन अने इंद्रियोने नियममा राखवाथी अने आरोग्यताना नियमोने पण लक्ष पूर्वक पाळेवार्थी उक्त गुण प्राप्त थइ शके छे. 'शरीर माद्यं खलु; धर्म साधन'-शरीर' ए धर्म साधनोमांर्नु एक अति अगत्यर्नु साधन होवाथी तेनी योग्य संभाळ लेवानी सर्व कोइनी प्रथम फरज छे।
३. सौम्यता-जेम चंद्रने देखी सर्व कोइने शीतळता वळे एवी प्रकृतिनी सहज शीनळता सात्विक विचार, सात्त्विक भाषण, सात्विक कार्योवडे सहज सिद्ध थाय छे. सहज शीतळ स्वभाववाळा माणसो सर्व कोइने अभिगम्य थाय छे. तेवी ठंडी प्रकृति प्राय: सर्व कोइने प्रिय होवाथी ते सर्वना विश्वासपात्र थइ पडे छे,
४. जनप्रिय-लोक प्रिय गुण सर्व कोइने वल्लभ थवाय एवां सत्कार्य-सुकृत करवाथी अने आलोक परलोक विरुद्ध दुष्कृत तजवाथी प्राप्त थइ शके छे, आ गुणथी माणस धारे एवां मोटा कार्य करी शके छे. . ५, अक्रूर-तामसी प्रकृति तजीने क्षमा, नम्रता तथा अनुकंपादिक गुणनो अभ्यास करवाथी क्रूरता-कठोरता दोष दूर थाय