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श्री जनहितोपदेश भार्ग २ जो. मंडूकी पेदा थइ शकती नथी तेम विवेक पूर्वक भोगाशंसा तजीने निष्कामपणे जो तहेतु अने अमृत क्रियाने सेववामां आवे छे तो तेथी अंते.भवनो अंत करीने परम समाधिमय मोक्ष सुखनी प्राप्ति
थाय छे.
३८ स्व कर्तव्य समजीने स्वपर हित साधवा तत्पर रहे.
जे शुभाशय प्रथम स्वहित यथार्थ समजीन आदरे छे, तेमांज अहोनिश सावधान रहे छे, तेज महाशय कालांतरे परहित साधवाने समर्थ थइ शके छे. पण जो पहेलो पोतानुं खलं हितज शुं छे ते पूरे जाणतो के आदरतो नथी तो ते परहित शी रीते साधी शकशे? पोते निर्धन छतां अन्यने शी रीते धनाढ्य करी शकशे ? पोतेज द. रिआमां डूवतां छतां अन्यने शुं तारी शकशे ? माटे व हितने यथार्थ समजीने साधनारज परहितने पण परमार्थथी जाणी समजीने साधी शकवानो ए वात निःसंशय सिद्ध छे.
___ज्ञानी-विवेकीजनो स्वहितनी पेरे परहितने पण व कर्तव्यज समजे छे, अने तेथीज तेओ निरभिमानपणे स्वहित समजीनेज परहित करे छे.
तत्त्वदृष्टि महापुरुषो कदापि पण 'हु अमुकर्नु हित करंर्छ' 'मारा विना अमुकनु हित थइ शकशे नहिं ' एबुं कर्तृत्व-अभिमान