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विनयसमधि
प्रथम उद्देश
विशिष्टनीति या विशिष्ट कर्तव्यका ही दूसरा नाम विनय हैं।
साधक जीवन के दो प्रकार के कर्तव्योंमें सामान्य की अपेक्षा विशिष्ट कर्तव्य की तरफ अधिक लक्ष्य देना चाहिये, क्योंकि सामान्य कर्तव्य गौण हुआ करता है और विशिष्ट कर्तव्य ही मुख्य होता है। मुख्य धर्मोंके पोषण के लिये ही सामान्य धर्मोंकी योजना की जाती है। मुख्य धर्मकी हानि कर सामान्य धर्मकी रक्षा करना निष्प्राण देह की रक्षा करनेके समान व्यर्थ है।
गृहस्थके विशिष्ट कर्तव्य, साधकके विशिष्ट कर्तव्य तथा भिक्षुश्रमण के विशिष्ट कर्तव्य ये तीनों ही भिन्न २ होते हैं
__इस अध्ययनमें प्रत्येक श्रेणीके जिज्ञासुओं के जीवनस्पर्शी विषयोंका वर्णन किया गया है। परन्तु उनमें भी गुरुकुल के श्रमण साधकों के अपने गुरुदेव के प्रति क्या क्या कर्तव्य हैं इस बात पर विशेष भार दिया गया है। ___ शास्त्रकारोंने साधकके लिये उपकारक गुरुको परमात्मा के समान बहुत ऊंची उपमा दी हैं। गुरुदेव, साधकके जीवन विकासके रास्ते के जानकार सहचारी हैं और वे उसकी नावके पतवार के समान हैं।