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दशवैकालिक सूत्र
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चेतनवंत लक्ष्यविन्दु है । इस साधना के मार्ग में विद्याका दुरुपयोग तथा बलका संसर्ग कांटेके समान अहितकर हैं । उनको निर्मूल कर सत्संग तथा सदाचार का सेवन कर मुझ साधक सद्वर्तनके लिये सदैव उद्यमवंत रहे ।
ऐसा मैं कहता हूं:
इस प्रकार 'आचारप्रणिधि' नामक आठवां अध्ययन समाप्त हुआ ।