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दशवकालिक सूत्र
[३०] यदि कदाचित् उनके विषयमें बोलना ही पडे तो दावत को
दावत कहे, चोरके विषयमें 'धन के लिये इसने चोरी की होगी। तथा नदियों के विषय में इनके किनारे समान हैं
इस प्रकार की परिमित भाषा ही साधु बोले । [३८] तथा नदियों को जलपूर्ण देखकर “इन नदियों को तैर कर
ही पार किया जा सकता है, इन्हें नावद्वारा पार करना चाहिये अथवा इनका पानी पीने योग्य है" इत्यादि प्रकार की सावध
भाषा साधु न बोले। [२६] परन्तु यदि कदाचित इनके विषयमें बोलना ही पडे तो बुद्धि
मान साधु नदियों के विपयमें ये नदियां अगाध जलवाली हैं, जलकी कल्लोलों से इनका पानी खूब उछल रहा है और बहुत
वित्तारने इनका जल वह रहा है श्रादि २ निर्दोप भाषा ही बोले । [४०] और यदि किसीने किसी भी प्रकार की दूसरे के प्रति पापकारी
क्रिया की हो अथवा करनेवाला हो उसे देखकर या जानकर बुद्धिमान लाधु ऐसा कभी न कहे कि "उसने यह ठीक किया
है या वह ठीक कर रहा है”। [४] और यदि कोइ पाप क्रिया हो रही हो तो "यह वडा ही
अच्छा हो रहा है अथवा भोजन बना रहा हो उसे अच्छी तरह बना हुआ बताना; अमुक शाक अच्छा कटा है, कृपण के धन-हरण हो जाने पर 'चलो, अच्छा हुआ', अमुक पापी मरगया हो तो अच्छा हुआ' यह मकान सुन्दर बना है, तथा यह कन्या उपवर (विवाद योग्य) हो गइ है इत्यादि प्रकार
के पापकारी वाक्य बुद्धिमान मुनि न कहे। [१२] किन्तु यदि उनके विपयनें बोलना ही पड़े तो साधु; बने हुए
भोजनों के विषय, 'यह भोजन प्रयत्न से बना है', करे हुए.
[१६] और हो रहा है अमा, अमुक शाकाहा हुआ', अा है, तथा