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सुवाक्यशुद्धि
शाकके विपयमें 'यत्नाचार पूर्वक करा हुआ शाक' कन्या को देखकर 'संभाल पूर्वक लालनपालन की हुई तथा साध्वी होने के योग्य कन्या' शृंगारों के विषयोंमे ये कर्मबंध के कारण हैं। तथा धायल को देखकर 'अति घायल' यादि २ अनवद्य वाक्य
प्रयोग ही साधु करे। [४३] यदि कभी किसी गृहस्थके साथ वर्तालाप करने का प्रसंग
श्राजाय तो उस समय 'यह वस्तु तो सर्वोत्कृष्ट है, प्रति मूल्यवान है, अनुपम है, अन्यत्र मिल ही नहीं सकती ऐसा अनुपम अलभ्य यह है, यह वस्तु बेचने योग्य नहीं है, किंवा स्वच्छ नहीं है, यह वस्तु अवर्णनीय है, अनीतिकर है आदि २ प्रकारके सदोप वाक्य-प्रयोग साधु न करे।
टिप्पणी-बहुत बार ऐसा होता है कि हमें वस्तुके गुणदोपोंका यथार्थ शान नहीं होता जिसके कारण हम थोडेसे मूल्यको वस्तुको भी बहु मूल्य या अमूल्य बता देनेकी भूलकर बैठते हैं। इससे अपना तो अशान प्रकट होता
और वस्तुको यथार्थ कीमत भी शात नहीं होती इसलिये साधु किसी भी वस्तुको आकस्मिक प्रशंसा या अप्रशंसा न करे। सारांश यह है कि साधुको बहुत हो मितभापी होना चाहिये। जहां अनिवार्य आवश्यकता हो वहीं, और वह भी वडे विवेक के साथ नपेतुले शव हो वोले। [४] "मैं तुम्हारी ये समाचार उससे कह दूंगा, 'अथवा तुम मेरा
यह सन्देश अमुक भादमी से कहना" श्रादि प्रकार की वातें साधु न कहे किन्तु प्रत्येक स्थल (प्रसंग) में पूर्ण विचार करके ही बुद्धिमान साधु बोले।
टिप्पणी-कई बार ऐसे प्रसंग आते हैं कि गृहस्थजन साधुओंको अमुक संदेश अमुक व्यक्ति से कहने की प्रार्थना करते हैं तो उस समय 'हां में उनसे कह दूंगा' ऐसा कहना उचित नहीं क्योंकि एकके मुखसे निकली हुई