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________________ दशवकालिक सूत्र दाता भी पहिले भिक्षुकों के साथ एक नवागन्तुक भिक्षुक को आया देखकर मनमें चिढ जायगा और कहेगा, किसे २ मैं दूं? ऐसे समय में वह हलके शब्द भी कह बैठे तो आश्चर्य नहीं । एक सामान्य भिखारी जैसी दशा जैन साधु को प्राप्त हो यह जैन शासन के संयमधर्म की महत्त को बट्टा लगाने जैसी बात है। इन्हीं सब कारणों से उक्त प्रकार की आज्ञा दी गई है। [१३] किन्तु गृहपति आये हुए उन भितुओं को सिक्षा दे या न दे और जब वे भिक्षुक लौट जाय उसके बाद ही संयमी भोजन या पानी के लिये वहां जाय । [१४+१२] नीलोत्पल (नीला कमल), पद्म (लाल कमल), कुमुद (चंद्र के उदित होने पर प्रफुल्लित होनेवाला सफेद कमल), मालती, मोगरा अथवा ऐसे ही किसी सुगंधित पुष्प को तोडकर कोई वाई . मिता दे तो वह भोजनपान संयमी के लिये अकल्प्य है इस लिये साधु उस दाता बाई को यों कहे कि यह आहारपान अब मेरे लिये ग्राह्य (कल्प्य) नहीं है। [१६११७] नीलोत्पल, लाल कमल, चंद्रविकासी श्वेत कमल अथवा मालती मोगरा आदि अन्य किसी सुगंधित पुप्प को बांटकर, तोड मरोड कर, अथवा पीस कर यदि कोई वाई भिक्षा व्होरावे (द) तो ऐसा भोजनपान साधु के लिये ग्राह्य नहीं है इस लिये भिक्षा देनेवाली बाई को साधु कहे कि हे भगिनि ! यह अन्नपान मेरे लिये कल्प्य नहीं है। [+१६] कमल का कंद, धुइयां अरई, कमल का नाल (दंड), हरे कमल का दंड, कमल के तंतु, सरसौं का दंड, गन्ने का टुकडा ये सभी वस्तुएं यदि सचित्त हों तो तथा नई २ कौंपले (नये पत्ते); वृक्ष की, घास की अथवा अन्य वनस्पतियों की कच्ची कौंपले आदि दातव्य भोजन में हों तो साधु उनको भी ग्रहण न करे।
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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