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________________ पिढेपणा [२०] और (जिनमें बीज नहीं पडा है) ऐसी कोमल मूंग, मटर, मोंठ श्रादि की फलियों को जो सेसी भी जाचुकी हों अथवा कच्ची हों तो उनको देनेवाली बहिन को भिक्षु कहे कि यह भोजन मुझे ग्राह्य नहीं है। [२१] अग्नि से अच्छी तरह न पके हुए कोल (बोरकूट) करेले, नारियल, तिलपापडी, तथा निवौली (नीम का फल) आदि के कच्चे फलों को मुनि ग्रहण न करे। [२२] (और) चावल तथा तिल का आटा, सरसों का दलिया, अपक पानी श्रादि यदि कच्चे हों अथवा मिश्र पेय हों तो भिक्षु उनको ग्रहण न करे। [२३] अपक्व कोठ का फल, विजौरा, पत्तेसहित मूली, मूली की कातरी (कचरियां) आदि कच्चे अथवा शस्त्रपरिणत (अन्य स्वभाव विरोधी वस्तु द्वारा अचित्त).न किये गये हों तो उन पदार्थों की मुनि मन से भी इच्छा न करे। [२४] इसी प्रकार फूलों का चूर्ण, चीजों का चूर्ण, बहेडे तथा रिवरती के फल आदि यदि कच्चे हों तो सचित्त समझकर साधु उन्हें त्याग दे। [२१ साधु हमेशा सामुदानिक (धनवान एवं निर्धन इन दोनों) स्थलों में गोचरी करे । वह निर्धन कुल का घर जानकर उसको लांघकर श्रीमंत के घर न जाय । . टिप्पणी-श्रीमंत हो या गरीब हो किंतु भिक्षु उन दोनों को समदृष्टि से देखे और रागरहित होकर प्रत्येक घरमें गोचरी के लिये जाय । [२६] निर्दोप भिक्षाग्रहण की गवेषणा करने में रत और श्राहार ___की मर्यादा का जानकार पंडित भितु; भोजन में अनासक्ति भाव
SR No.010496
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year1993
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size8 MB
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