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पिढेपणा
[८] गृहस्थ के यहां मितार्थ गया हुआ संयमी साधु किसी भी
स्थान पर न बैठे अथवा कहीं पर खढे २ किसी के साथ गप्पसप्प (वाते) न करे।
टिप्पणी-गृहस्यों का अति परिचय अन्तमें संयमी जीवन के लिये वाधाकर हो जाता है इसी लिये महापुन्योंने प्रयोजन के योग्य हो गृहस्थों के साथ संबंध रखने की और आवश्यकता से अधिक संबंध न रखने की आशा दी है। [6] गोचरी के लिये गया हुया संयमी किसी गृहस्थ के घर की
भूगल (चिमनी), किवाड के तख्ते, और दरवाजा या किवाड का सहारा लेकर (अर्थात् उसका अवलंबन लेकर) खडा न हो।
टिप्पणी-संभव है कि उनके सहारे खडे होने से दरवाजा या किवाड आदि हिल जाय और उससे साधु के गिर पड़ने की आशंका हो। [१०+११] गोचरी के लिये गया हुआ साधु अन्य धर्मों के अनु
यायी श्रमण ब्राह्मण, कृपण या भिखारी जो गृहस्थ के द्वार पर भोजन अथवा पानी के लिये भिक्षार्थ खडा हो तो उसको लांघ कर गृहमें प्रवेश न करे और जहां पर उक्त मनुष्यों की उस पर दृष्टि पड़े ऐसे स्थान में खडा न हो, किन्तु एकांत
में (एक तरफ) जाकर खडा हो । [१२] क्योंकि वैसा करने से वे भिखारी किंवा स्वयं दाता ही
अथवा दोनों ही अप्रसन्न-चिढ होने की संभावना है और उससे अपने धर्म की हीनता दिखाई देगी।
टिप्पणी-अन्यधर्मी श्रमण, ब्राह्मण, कृपण और भिखारी ये भी स्वभावतः भिक्षा के अर्थी हैं। यदि साधु इनकी उपस्थितिमें मिक्षा के लिये जायगा तो वे अपने मनमें यों कहेंगे, कि यह कहां से यहां आगया ? हमारी मिक्षा में यह भी हिस्सेदार हो गया ! इस प्रकार उनको दुःख होना संभव है।