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दशवैकालिक सूत्र
[2] ( महापुरूप कहते हैं कि ) " हे रक्खे बिना तू किसी ग्रामादि
साधु ! यदि समय का ध्यान स्थानमें भिक्षार्थ चला जायगा और समय की अनुकूलता प्रतिकूलता न देखेगा तो तेरी आत्मा को खेद होगा और भोजन न मिलने से तू गाम की निन्दा करेगा ।"
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टिप्पणी-भोजन खाया जा चुकने पर गोचरी जाने से आहार नहीं मिल सकेगा और आहार न मिलने से मुनि को दुःख होगा और यह नाम कैला खराब है जहां मुनिको भोजन भी नहीं मिलता है आदि २ अनिष्ट विचार भी आने लगने की संभावना है ।
[६] इस लिये जब भिक्षा का समय हो तभी भिक्षु को भिक्षा के लिये जाना चाहिये । भिक्षा के समुचित समय पर निकलने पर भी यदि कदाचित भिक्षा न मिले तो भी मुनि को खेदखिन्न या दीनहीन होकर शोक नहीं करना चाहिये किन्तु ऐसा मनमें समझना चाहिये कि " चलो, अच्छा ही हुआ, यह स्वयमेव तपस्या होगई ।" ऐसा मान कर वह समभावपूर्वक उस दुधाजन्य कष्ट को सह ले ।
[७] जहां छोटे बडे पशुपती भोजन करने के लिये इकट्ठे हुए हों ऐसे स्थान के सामने होकर साधु न निकले किन्तु उपयोगपूर्वक उनसे बचकर किसी दूसरे मार्ग से निकल जाय । यदि कदाचित दूसरा मार्ग न हो तो वह स्वयं ( किन्तु धागे बढकर उनके भोजन लेने में
पीछे लौट श्रावे | विघ्न न डाले)
टिप्पणी- भिक्षु के सामने जाने से उन प्राणियों को भय होगा और इस कारण वे वहां से भाग या उड जांयगे और उन्हे भोजन ग्रहण - करने में अन्तराय ( विघ्न ) पडेगा ।