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________________ द्वितीय मुस्लेिट : जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा 24 जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियों एवं प्रेरणाएं, जाग्रत करना उनका मुख्य उद्देश्य था। जैन कवियों ने काव्यों की रचना एक ओर स्वान्तः सुखाय हेतु की है तो दूसरी ओर कोमलमति जनसमूह तक जैनधर्म के उपदेशों को पहुँचाने के लिए की है। इसके लिए उन्होंने धर्मकथानुयोग या प्रभमानुयोग का सहारा लिया है। जन सामान्य को सुगम रीति से धार्मिक नियम समझाने के लिए कथात्मक साहित्य से बढ़कर अधिक प्रभावशाली साधन दूसरा नही है। उनकी कुछ रचनाओं को छोड़कर अधिकांश कृतियाँ विद्वद्वर्ग के लिए नहीं अपितु सामान्य कोटि के जनसमूह के लिए है। इस कारण से ही उनकी भाषा अधिक सरल रखी गयी जनता को प्रभावित करने के लिए अनेक प्रकार की जीवन घटनाओं पर आधारित कथाओं और उपकथाओं की योजना इन काव्य ग्रन्थों की विशेषता है। इन विद्वानों ने चाहे प्रेमाख्यानक काव्य रचा हो अथवा चरितात्मक, सभी में धार्मिक भावना का प्रदर्शन अवश्य किया है। इस धार्मिक भावना को प्रकट करने में उन्होंने जैनधर्म के जटिल सिद्धान्तों और मुनिधर्म सम्बन्धी नियमों को उतना अधिक व्यक्त नहीं किया है जितना कि ज्ञानदर्शन-चरित्र के सामान्य विवेचन के साथ अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और परिग्रहस्वरूप सार्वजनिक व्रतों दान शील तप, भाव, पूजा, स्वाध्याय आदि आचरणीय धर्मों को प्रतिपादित किया है। (ख) विभिन्न वर्ग के अनुयायियों की प्रेरणा त्यागी वर्ग- चैत्यवासी, वसतिवासी यति, भट्टारक में क्रिया काण्ड ७५
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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