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________________ द्वितीय परिच्छेद : जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा 24 जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियों एवं प्रेरणाएं, विषयक भेदों को लेकर नये-नये गण-गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ। उनके नायकों ने अपने-अपने गण की प्रतिष्ठा से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों का विशेष रूप से भ्रमण करना शुरु किया। उन लोगों ने अपने उच्च चारित्र्य पांडित्य तथा ज्योतिष, तंत्र-मंत्रादि से तथा अन्य चमत्कारों से राजवर्ग ओर धनिक वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करना प्रारम्भ किया तथा विभिन्न स्थलों पर चैत्य, उपाश्रय आदि धर्मायतनों की स्थापना करने लगे और अपने बढ़ते हुए शिष्य समुदाय की प्रेरणा से तथा अपने आश्रयदाताओं के अनुरोध से व्रत, पर्व, तीर्थादि महात्म्य तथा विशिष्ट पुरुषों के चरित्र वर्णन करने के लिए कथात्मक ग्रन्थों की रचना की ओर विशेष ध्यान दिया। इस युग के अनेक जैन कवियों को या तो राजाश्रय प्राप्त था या वे मठाधीस थे। राष्ट्रकूट अमोधवर्ष और उसके उत्तराधिकारियों के संरक्षण में जिनसेन और गुणभद्र ने महापुराण, उत्तरपुराण की, कुमार पाल के गुरु हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की तथा वस्तुपाल के आश्रय पर पश्चात्कालीन कई आचार्यों ने अनेक प्रकार से काव्य-साहित्य की सेवा की। अनेकों काव्य ग्रन्थों में विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रेरणाओं का साभार उल्लेख भी मिलता (ग) गच्छीय स्पर्धा यद्यपि त्यागी वर्ग को राज्य और धनिक वर्ग का आश्रय प्राप्त था तथापि उन्हे धन की इच्छा नहीं थी। उनसे प्राप्त सुविधा का उपयोग वे ७६) ७६
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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