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________________ द्वितीय मरिच्छेद : जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा म जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं प्रेरणाएं, भी अनेक सुविधाएँ प्राप्त थीं। जब कोई विद्वान् नवीन ग्रन्थ रचने का प्रयास करता था तो वह एतन्निमित्त लकड़ी की पाटी या कपड़े पर शब्दों को लिखा करता था और उन शब्दों की व्युत्पत्ति पर एक-दूसरे से विचार-विमर्श करता था। शब्दों के उपयुक्त प्रयोगों के लिए प्राचीन कवियों के ग्रन्थों से नमूने लिए जाते थे और भावानुकूल रचना का निर्माण कर संशोधन-कर्ताओं से उसका संशोधन करा लिया जाता था। इस प्रकार ग्रन्थ के संशोधित रूप को पत्थर-पाटी-स्लेट अथवा लकड़ी की पाटी आदि पर लिखकर उसे सुलिपिकों द्वारा ग्रन्थरूप से लिखा लिया जाता था। ग्रन्थ रचना करते समय विशेष सूचना देने के लिए विद्वान् शिष्य और साधुगण सहायक रहते थे। कितनी वार विद्वान् उपासक भी इस प्रकार की सहायता करते थे। जैन काव्य साहित्य के निर्माण में मूल प्रेरणाएँ - (क) धार्मिक भावना पूर्व और उत्तर मध्यकाल की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और साहित्यिक परिस्थितियों तथा लेखन कार्य की सुविधाओं का प्रभाव हमारे आलोच्य युग के जैन काव्य साहित्य पर विशेष रूप से पड़ा। इस साहित्य को देखने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि जैन काव्यकारों का दृष्टिकोण धार्मिक था। जैन धर्म के आचार और विचारों को रमणीय पद्धति से एवं रोचक शैली से प्रस्तुत कर धार्मिक चेतना और भक्तिभावना को |७४
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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