________________
द्वितीय परियो
:
जैनकुमारसम्भवकार की जीवन वृत्त, कृतियाँ तथा जैन काव्य साहित्य की तत्कालीन परिस्थितियाँ एवं प्रेरणाएं,
जैन मुनियों को शृङ्गार
आदि कथाओं को सुनने और सुनाने का निषेध था पर श्रावक वर्ग को साधारणतया इस प्रकार की कथाओं में विशेष रसोपलब्धि होती थी। युग की माँग के अनुरूप जैन विद्वद्वर्ग ने न केवल संस्कृत में बल्कि प्राकृत और अपभ्रंश में भी अनेक विध रचनाएं लिखी । जैन विद्वान स्वभावतः संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंस के विद्वान् थे । प्राकृत उनके धर्म ग्रन्थों की भाषा थी और सामान्य वर्ग तक पहुँचने के लिए वे अपभ्रंश में रचनाएँ लिखकर उसका विकास कर रहे थे तथा पंडित एवं अभिजात वर्ग से सम्पर्क के लिए संस्कृत में भी परम निष्णात थे। संस्कृत यथार्थतः उस काल तक पाण्डित्यपूर्ण विवेचनों और रचनाओं की भाषा वन गई थी । एतन्निमित्त जैनों ने न्याय व्याकरण, गणित, राजनीति एवं धार्मिकउपदेशप्रद विषयों के अतिरिक्त आलङ्कारिक शैली में पुराण चरित एवं कथाओं पर गद्य एवं पद्य काव्य रूप में संस्कृत रचनाएं निर्मित की। साहित्य - निर्माण के क्षेत्र में जैनों का सर्वप्रथम ध्यान लोकरूचित की ओर रहा है इसलिए उन्होंने सामान्य जन भोग्य प्राकृति अपभ्रंश के अतिरिक्त अनेक प्रान्तीय भाषाओं- कन्नड़, गुजराती, राजस्थानी एवं हिन्दी आदि में ग्रन्थों का प्रचुर मात्रा में प्रणयन किया। जैनों के साहित्य-निर्माण कार्य में राजवर्ग और धार्मिक वर्ग की ओर से बड़ा प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिली थी। उसकी चर्चा हम कर चुके हैं।
(ङ) लेखन विधि
जैन विद्वानों को लेखनकार्य में साधुवर्ग और समाज की ओर से
७३