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________________ - सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि | कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन कुमार-सम्भव में हास्य रस का परिपाक अन्य रसों की अपेक्षा अधिक नहीं हुआ है कि जैनकुमारसम्भव से उत्कृष्ट तो है ही। महाकवि ने चतुर्थ सर्ग के मदन दहन प्रसंग में करुण रस को विनियोजित किया है। वह उनके रस ज्ञान का चरमोत्कर्ष है। पूरा-पूरा चतुर्थ सर्ग करुण रस पर आधारित है उपमानमभूद्विलासिनां करणं पत्तव कान्तिमन्तया। तदिदं गतमीदृशीं दशां न विदीर्ये कठिनाः खलु स्त्रियः।। शान्त रस की भी उत्कृष्ट प्रतिष्ठा है भास्वन्ति रत्नानि महौषधींश्च पृथूपदिष्टां दुदुहुर्धरित्रीम्। अनन्तरत्नप्रभवस्य यस्य हिमं न सौभाग्य विलोपि जातम्।। रौद्र रस अपनी समाधि में विवरण स्वरूप कामदेव को देखकर भगवान शिव का स्वरूप रौद्र रस से संयुक्त है तपः परामर्शविवृद्धमन्योर्भूभङ्गदुष्प्रेक्ष्य मुखस्य तस्य। स्फुरन्नुदर्चिः सहसा तृतीयादक्ष्णां कृशानुः किल निष्पपात।। वीर रस कुमारसम्भव का चौदहवां सर्ग जिसमें कुमार कार्तिकेय और तारकासुर के बीच युद्ध का वर्णन है वीर रस से भरा पड़ा है- जिसमें एक उदाहरण बाणैः सुरारिधनुषः प्रसृतैरनन्तैनिर्घोष भीषित भटोलसदंशुजालैः। अन्धीकृता खिल सुरेश्वर सैन्य ईंशसूनुः कुतोऽपि विषयं न जगाम दृष्टेः।।२ २५०
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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