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सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि al
कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन
अनि
भयानक रस
भगवान शिव के बैल नदी का स्वरूप वर्णन इस प्रकार है
तुषार संघात शिलाः खुराग्रैः समुल्लिखन्दर्प कलः ककुद्यान्। दृश्टः कथंचिद् गवयैर्विविग्नैरसोढसिंह ध्वनिरुन्ननाद।।
वीभत्स रस
युद्ध में वीरों के कवन्ध या धड़ बड़ी कठिनाई से नाचते थे
रणाङ्गणे शोणित पङ्कपिच्छिले कथं कथंचिन्ननृतुभृतायुधाः।
नदत्सु तूर्येषु परेतयोषितां गणेषु गायत्सु कबन्धराजयः।। इस वर्णन में वीभत्स रस है और वीरों की दशा का वर्णन है
न रथी रथिनं भूयः प्राहस्च्छस्त्रभूर्च्छितम्।
प्रत्यापसन्त मन्विच्छन्नातिष्ठधुधि लोभतः।। अद्भुत रस में प्रतिष्ठित है।
छन्द की दृष्टि से दोनों महाकाव्यों की तुलना करने पर ज्ञात होता है। महाकवि जयशेखर सूरि छन्दों के प्रयोग में नाट्य शास्त्र के नियमों का अनुपालन किया है। उन्होंने सर्ग के अन्त में छन्द बदल दिया है। प्रथम सर्ग में अयोध्यापुरी के वर्णन में उपजाति छन्द का प्रयोग किया है
"अस्त्युत्तरस्यां दिशि कोशलेति इत्यादि।" तथा सर्ग के अन्त में शार्दूल विक्रीडित छन्द की योजना है