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सप्तम् पुस्तिछेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि
कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन
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अमोघं सञ्चाराय सद्यो गङ्गावगाहनात्।।
उपर्युक्त वर्णनों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि संसार के प्रायः समस्त कवियों ने वस्तु वर्णन में अपनी कल्पना का उपयोग कर उसे रमणीय रूप प्रदान करने का प्रयास किया है वही कालिदास जी कल्पनाओं द्वारा कथा में ही परिवर्तन करने का अद्वितीय साहस करते हुए कथा और उसके विषय वस्तु को मधुर, मनोहर और अतीव सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया
किन्तु जैनकुमारसम्भव में कुमारसम्भव की कल्पनाओं को यथावत ग्रहण किया है। कुमारसम्भव में किये गये हिमालय वर्णन की कल्पना का अनुकरण करके अयोध्यापुरी का वर्णन किया- अस्त्युत्तरस्यां दिशि कोशलेति ....। और इसी प्रथम सर्ग में ऋषभदेव के जन्म से योवन तक का वर्णन भी कुमारसम्भव में पार्वती के जन्म से योवन तक के वर्णन से प्रभावित है। अतः स्पष्ट है कि जयशेखर सूरि जी कल्पना जगत में कालिदास जी से प्रभावित है किन्तु उनकी एक भिन्नता उनकी विशिष्टता को द्योतित..करता हैसुमङ्गला के द्वारा देखा गया 'चौदह स्वप्न वर्णन'
प्रथमं सा लसद्दन्त ....... इत्यादि। -७/२४-५१ उपर्युक्त चौदह स्वप्नों को देखकर सुमङ्गला भयभीत होती है और इन स्वप्नों का फल जानने के लिए वह ऋषभदेव के पास जाती है। अपने आवास में सुमङ्गला को असमय में आते हुए देखकर ऋषभदेव की नाना प्रकार की
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