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________________ सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन, अचान रूप में माना गया है फलस्वरूप उपवन का कोना-कोना पुष्पित हो उठा। उसने संस्कृत को वाणी दी, नई-नई साज-सज्जाएं, नये भाव, नयी दिशाएं, नये विचार, नयी-नयी पद्धतियाँ दी। वह संस्कृत का सबसे बड़ा कवि और नाटककार हुआ" ।१९ महाकवि कालिदास के सम्बन्ध में गेटे के इन भावों को विश्व-कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इन शब्दों में व्यक्त किया है- स्वर्ग और मृत्यु का जो यह मिलन है, उसे कालिदास ने सहज ही सम्पन्न कर किया है। उन्होंने फूल को इस सहज भाव में परिणत कर लिया है, मर्त्य की सीमा को उन्होंने इस प्रकार स्वर्ग से मिला दिया है कि बीच का व्यवहार किसी को भी दृष्टिगोचर नहीं होता। आचार्य पं० बलदेव उपाध्याय ने कालिदास की कविताओं के संदर्भ में अपना विचार इस प्रकार व्यक्त किया है- महाकवि कालिदास की कविता देववाणी का शृङ्गार है। माधुर्य का निवेश, प्रसाद की स्निग्धता, पदों की सरस शय्या, अर्थ का सौष्ठव, अलङ्कारों का मंजुल प्रयोग कमनीय काव्य के समस्त लक्षण कालिदास की कविता में अपना अस्तित्व धारण किये हुए है। कालिदास भारतीय संस्कृत के प्रतिनिधि कवि है जिनके पात्र भारतीयता की भव्य मूर्ति है। जीवन के विविध परिस्थितियों के मार्मिक रूप को ग्रहण करने की क्षमता, जिस कवि में विशेष रूप से होगी, जनता का वही सच्चा प्रिय कवि होगा। यद्यपि विद्वानों के उपर्युक्त कथनों में कालिदास की कविताओं की समस्त विशेषता प्रत्यक्षतः परिलक्षित होता है, तथापि परोक्ष रूप से उसका भाषा के (२२०
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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