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________________ सप्तम् छेद्र : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन साथ भी सम्बन्ध है। कालिदास का भाषा पर पूर्ण अधिकार है। इनकी भाषा व्याकरण से परिष्कृत है। ये चुने हुए शब्दों का प्रयोग करते है। किसी भी बात को घुमाफिराकर कहने की अपेक्षा सीधे कह देना उन्हें अधिक प्रिय है। इनके द्वारा 'तु' 'हि' 'च' 'वा' का प्रयोग केवल पादपूर्ति के लिए ही किया गया है अपितु कुमारसम्भव में इनका सार्थक प्रयोग हुआ है। ___ कुमारसम्भव का हिमालय वर्णन भाषा की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध है और इसमें भाषा की प्रौढ़ता परिलक्षित होती है। कपोलकण्डुः करिभिर्विनेतुं विघट्टितानां सरद्रुमाणाम्। यत्र स्तुतक्षीरतया प्रसूतः सानून गन्धः सुरभी करोति।।२ भाषा माधुर्य की दृष्टि से निम्न श्लोक है मधु द्विरेफः कुसुमैकपात्रेपयौप्रियां स्वामनुवर्तमानः। शृङ्गेण च स्पर्श निमीलिताक्षी मृगीमकण्डूयत कृष्ण सारः।। उपर्युक्त श्लोक में 'च' पद का सार्थक प्रयोग'३ किया गया है। हि पद का सार्थक प्रयोग ब्रह्मा द्वारा देवताओं से शिवमहिमा का कथन श्रवणीय स हि देव परं ज्योतिस्तमः पारे व्यवस्थितम्। परिच्छिन्न प्रभा वर्द्धिनं मया न च विष्णुना।।१४ संस्कृताचार्यों ने प्रमुख रूप से रीतियाँ तीन प्रकार की मानते है- वैदर्भी,
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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