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सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि 24"
कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन
4पाच
भी है यथा
स एव देव स गुरु स तीर्थ स मङ्गलं सैव सखा स तातः। स प्राणितं स प्रभुरित्युपासा
मासे जनैस्तद्गत सर्वकृत्ये।। यहाँ देवचरित का वर्णन होने के कारण जैनकुमारसम्भव पुराणाश्रित है।
"देवि तवमेवास्य निदानमास्से सर्गे जगन्मङ्गलगान हेतोः।
सत्यं त्वमेवेति विचारयस्व रत्नाकरे युज्जायत एव रत्नम्।। यहाँ (कुमारसम्भव) भी देवचरित के वर्णन से पुराणाश्रित है अतएव दोनों ही महाकाव्यों की कथावस्तु ऐतिहासाश्रित एवं पुराणाश्रित दोनों है।
किन्तु जिस प्रकार कुमारसम्भव के प्रामाणिक भाग प्रथम आठ सर्गों में कार्तिकेय का जन्म वर्णित नहीं है, उसी प्रकार जैनकुमारसम्भव में भी कुमार भरत के जन्म का वर्णन नहीं है, केवल सुमङ्गला के गर्भाधान का संकेत किया गया है।
इस दृष्टि से दोनों ही महाकाव्यों के शीर्षक उनके प्रतिपाद्य विषयों पर चरितार्थ नहीं होते। दोनों ही महाकाव्यों की कथावस्तु अति संक्षिप्त है।
कुमार-सम्भव की कथावस्तु जैनकुमारसम्भव की कथावस्तु की अपेक्षा कुछ अधिक विस्तृत है, परन्तु उतना नहीं जितना कि महाकवि ने अपने वर्णना शक्ति के द्वारा इसे सत्रह सर्गों का महाकाव्य बना दिया है।
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