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________________ सप्तम् अरिषद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि कालिदास कत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन, (क) कथावस्तु की दृष्टि से दोनों का तुलनात्मक अध्ययन- आचार्य दण्डी ने अपने महाकाव्य लक्षण में महाकाव्यों की कथा को इतिहास से प्रादुर्भूत होना चाहिए और कथा-वस्तु के अन्तर्गत ही आशी-नमस्क्रिया वस्तु का भी निर्देश किया है इसी प्रकार आचार्य विश्वनाथ ने भी महाकाव्य के अपने लक्षण में महाकाव्य की कथा को इतिहाश्रित बताया है। दशरूपककार धनञ्जय ने कथा के संदर्भ में कुछ अधिक न कहकर वस्तु को आधिकारिक और प्रासंगिक' दो भेद किये है और पुनः आधिकारिक और प्रासंगिक कथावस्तु का लक्षण इस प्रकार किया है। आधिकारिक कथावस्तु की परिभाषा- 'फल' का स्वामित्व कहलाता है। उस अधिकारी से निवृत्त अर्थात् सम्पन्न की गयी अभिव्यापी या फल पर्यन्त रहने वाली कथावस्तु अधिकारी कहलाती है। उन्होंने प्रासंगिक की परिभाषा इस प्रकार की है परार्थ अर्थात् दूसरे इतिवृत्त आधिकारिक या प्रधान कथावस्तु को सिद्ध करने के लिए उपस्थित जिस इतिवृत्त का प्रसंगवश अपना भी प्रयोजन सिद्ध हो जाता है, वह प्रासंगिक आचार्य धनञ्जय ने आधिकारिक और प्रासंगिक कथावस्तु के भेदों का भी उल्लेख किया है। साहित्यदर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने वस्तु के दो- (१) आधिकारिक और (२) प्रासंगिक भेद किये है और प्रायः धनञ्जय के वस्तु भेद की तरह ही वस्तु-भेदों का निरूपण किया है। २१६ २१६
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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