________________
साथसामान
सप्तम् परिच रेद्र : श्री जयशेखरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि
कालिदास कत कमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन
(iii) कर्मफल को बताने के लिए प्राय: सभी महाकाव्यों में पूर्वभव की
कथाओं की योजना की गयी है।
(iv) जैन महाकाव्यों में कवि समय-सम्मत वर्ण्य-विषयों का विवेचन अर्थात्
सन्ध्या, रात्रि, सूर्योदय, चन्द्रोदय, ऋतुवर्णन, पर्वत, जल क्रीडा आदि का वर्णन कभी मूलकथा के साथ तो कभी अवान्तर कथा के साथ दिया गया है। अमरचन्द्र सूरि ने तो वर्ण्य-वस्तु के उपर्ण्य विषय बताकर वस्तु-वर्णन प्रसंग को और आगे बढ़ा दिया है।
(v)
जैन महाकाव्यों में भी रस को मूल तत्त्व के रूप में माना गया है। अधिकांश जैन महाकाव्यों में शान्त रस की प्रधानता है तथा अन्य रसों को गौण रूप दिये गये है।
(vi) जैन महाकाव्यों में आवश्यकतानुसार अलङ्कारों का उपयोग हुआ है।
वैसे वाग्भट ने अलङ्कारों को महाकाव्य के प्रमुख लक्षणों में नहीं माना है।
(vii) अनेक जैन महाकाव्यों की भाषा शैली प्रौढ़ है पर अधिकांश पौराणिक
महाकाव्यों की भाषा गरिमापूर्ण नहीं है। उसमें प्राकृत अपभ्रंश देशी शब्दों के मिश्रण है।
(viii) जैन महाकाव्यों का उद्देश्य विशेषकर धर्म फल को प्रदर्शित करना
है फिर भी उनमें त्रिवर्ग- धर्म, अर्थ और काम के फल की चर्चा करके अन्तिम फल मोक्ष बताया गया है।
२१५