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सप्तम् परिच्छेद : श्री जयशेरवरसूरि कृत जैनकुमारसम्भव एवं महाकवि
कालिदास कृत कुमारसम्भव का तुलनात्मक अध्ययन
(v) जैन महाकाव्यों में नायक के अनेक जन्मों की कथा का वर्णन होता
है, जो नायक के व्यक्तित्व एवं सम्पूर्णता को लक्ष्य करके अंकित किये जाते है आरम्भिक कथानक में काम तथा अर्थ का भरपूर रोचक चित्रण रहता है तथा श्रोताओं का सहज मनोरंजन होता है, परन्तु आगे चलकर कथानक की गति के साथ मनोरंजन की गति धीमी पड़ जाती है। इन महाकाव्यों की परिणति शान्त रस में होता है। शृङ्गार, वीर आदि रसों का चित्रण अंग रसों के रूप में ही दीखता है। इसलिए इनका उत्तरार्द्ध पाठकों की दृष्टि से पूर्वार्द्ध की अपेक्षा कम आकर्षक तथा न्युन हृदयावर्जक होता है। जैन महाकाव्यों की विशेषताओं को इस प्रकार उल्लिखित किया जा
सकता है
(i) प्रायः सभी महाकाव्यों का प्रारम्भ मंगलाचरण वस्तु निर्देश, सज्जन
दुर्जन चर्चा, आत्म-लघुता, पूर्वाचार्यों के स्मरण से होता है और अधिकांश जैनकाव्यों के अन्त में कवि का परिचय और उसकी गुरु परम्परा का उल्लेख मिलता है।
(ii) उसका कथानक इतिहास पुराण, दन्तकथा, प्राचीन महाकाव्य, समसामयिक
घटना या व्यक्ति पर आधृत है। उनका कथानक व्यापक और सुसंगठित होता है। अधिकांश महाकाव्यों में पाँच नाट्य सन्धियों की योजनापूर्वक कथानक का विस्तार किया जाता है।
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