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________________ बष्ठ : जैनकुमारसम्भव की कलापक्षीय समीक्षा, स प्राणितं सप्रभूरित्युपासा, मासे जनैस्तद्भतसर्वकृत्यैः ॥ २ और वह केवल आदर्शवादी राजा ही नही अपितु प्रजापालक, विज्ञान का ज्ञाता तथा उसका धारणकर्ता भी है पातुस्त्रिलोकं विदुषस्त्रिकालं त्रिज्ञानतेजो दधतः सहोत्थम् । स्वामिन्नतेऽवैभि किमप्यलक्ष्यं प्रश्नस्त्वयं स्नेहलतैकहेतुः ।।५३ ऐसा आदर्शवान राजा ही अपनी प्रजा को आदर्श मार्ग पर चलने की शिक्षा दे सकता है जडाशया गा इव गोचरेषु प्रजानिजाचारपरम्परासु प्रवर्तयन्नक्षतदंडशाली, भविष्यसि त्वं स्वयमेव गोपः । । ५४ उपर्युक्त वर्णनों से स्पष्ट है कि राजा और प्रजा दोनों ही चरित्रवान थे। यह आदर्शचरित महाकवि वाल्मीकि से प्रभावित लगता है। कवि ने उस समय के लोगों की सम्पन्नता को अयोध्या नगरी के वर्णन प्रसंग में इस प्रकार किया है संपन्नकामा नयनाभिरामाः, २०५
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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