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________________ पञ्चम द: जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलवार, गुण एवं दोष, मृदुलता तथा सहजता भाषा के माधुर्य की सृष्टि करते है। तृतीय सर्ग में इन्द्र-ऋषभदेव संवाद में माधुर्य की मनोरम छटा दर्शनीय है। वीतराग ऋषभदेव को विवाह के लिए प्रेरित करने वाली इन्द्र की युक्तियाँ उल्लेखनीय है जडाशया गा इव गोचरेषु, प्रजानिजाचार परम्परासु। प्रवर्तयन्नक्षतदंडशाली, भविष्यसि त्वं स्वयमेव गोपः।।१३३ कला समं शिल्प कुलेन देव, त्वदेव लब्ध प्रभवा जगत्याम्। क्वनो भविष्यन्त्युपकारशीलाः, शैलात्सरत्ना इव निर्झरिष्यः।।१३४ किं शंकशे दार परिग्रहेण, विरागतां निवृत्ति नायिकायाः। प्रभुः प्रभुतेऽप्यवरोधने स्या-नागः पदं लुम्पतिनक्रमंचेत्।।१३५ . तथा इन्द्र द्वारा पञ्चम सर्ग में वर ऋषभदेव को दिया गया यह उपदेश श्रवणीय है मुक्तिरिच्छति यदुज्झितदारं, स्त्री स्त्रियं नहि स हेतुः। कामयन्त इतरे तु महेला युक्तमेव पुरुषं पुरुषार्थाः।। इसी सर्ग में इन्द्र की पत्नी सची द्वारा सुमंगला को दिया गया उपदेश श्रवणीय है मास्म तष्यत तपः परितक्षीन मा तनूमतनुभिव्रतकष्टैः। इष्टसिद्धिमिह विन्दति योषिच्चेन लुम्पति पतिव्रतमेकम्।। ये सभी प्रसङ्ग माधुर्य गुण से ओत-प्रोत हैं। ओज गुण अत्यल्प
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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