________________
पञ्चम अहिलद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष
एवं दोष eS
पूर्णा उपमा के श्रोती और आर्थी दो भेद फिर दोनों में प्रत्येक वाक्यगत समासगत तथा तद्धिगत तीन प्रकार है। लुप्ता के १९ भेद हैं।
जैनकुमारसम्भव में कवि ने भावपूर्ण तथा अनुभूत उपमानों के द्वारा भावों की समर्थ अभिव्यक्ति की है। यथा
वधूद्वयदृष्टयो-श्चापलं यदभवदुरपोहम्। शैशवावधि वधूद्वयदृष्टयोश्चापलं यदभवहुरपोहम्
तत्समग्रमुपभर्तु विलिल्ये, ऽध्यापकान्तिक इवान्तिषदीयम्।। सुमंगला और सुनन्दा की दृष्टि की चंचलता पति के सामने इस प्रकार विलीन हो गयी, जिस प्रकार अध्यापक के सामने छात्र की चंचलता विलीन हो जाती है। इसी प्रकार उपमा के एक अन्य उदाहरण में साखियों ने सहसा उठकर सुमंगला को ऐसे घेर लिया जैसे की पंक्ति कमलिनी को घेर लेती हैं
तां ससंभ्रमसमुत्थितास्ततः, सन्निपत्य परिवरालयः।
उच्छ्वसज्जलरूहाननां प्रगे, पद्मिनीमिव मधुव्रतालयः॥५ कवि के उपमा कौशल का सम्यक् परिचय प्राप्त करने हेतु एक अन्य उपमा प्रस्तुत करते है
प्रगृह्य कौसुंभसिचा गलेऽवला, वलात्कृषन्त्येनमनैष्ट मंडपम्।
अवाप्तवारा प्रकृतिर्यथेच्छया, भवार्णवं चेतनमप्यधीश्वरम्।।६ अर्थात् एक स्त्री ऋषभदेव के गले में वस्त्र डालकर उन्हें विवाह