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पञ्चम, परिच्छेद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष
छन्द, अलङ्कार, गण
मण्डप में ऐसे ले गयी जैसे कर्म रूप पाप प्रकृति आत्मा को भव सागर में खींच के जाती है।
जैनकुमारसम्भव को 'सूक्ति-सागर' बनाने का श्रेय दृष्टान्त और अर्थान्तरन्यास अलङ्कार को है। काव्य में दृष्टान्त और अर्थान्तर न्यास की
भरमार है।
४. दृष्टान्त अलङ्कार
"दृष्टान्तः पुनरेतेषां सर्वेषांप्रतिबिम्बनम्'।२६ अर्थात् इन उपमान, उपमेय, उनके विशेषण और साधारण धर्म आदि सबका भिन्न होते हुए भी ओपम्य के प्रतिपादनार्थ उपमान-वाक्य तथा उपमेयवाक्य में पृथग उपादान रूप 'बिम्ब-प्रतिबिम्बभाव' होने पर दृष्टान्तालङ्कार होता है। निद्रा प्रसंसा में दृष्टान्त की मार्मिकता उल्लेखनीय है
दृष्टनष्टविभवेन वर्ण्यते, भाग्यवानिति सदैव दुर्विधः। जन्मतो विगतलोचनं जनं, प्राप्तलुप्तनयनः पनायति।।२८
५. अर्थान्तरन्यास अलङ्कार
सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते।
यन्तु सोऽर्थान्तरन्यासः साधमर्येणेतरेण वा। सामान्य अथवा विशेष का उससे भिन्न अर्थात् सामान्य का विशेष
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