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________________ पञ्चम सिटमेद: जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष, ९. प्रहर्षिणी "म्रौ ज्रौ गस्त्रिदशयतिः प्रहर्षिणीयम्" ११/७० और एक गुरु प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, नगण, जगण, रगण हो तीन और दश पर यति हो। १०. बसन्ततिलका "उक्ता बसन्ततिलका तभजाजगौगः" ११/७८ प्रत्येक चरण में तगण, मगण, दो जगण, दो गुरु हो पादात्त में यति हो। ११. मालिनी "ननमययुतेयं, मालीनी भोगिलोकैः" ११/८३ प्रत्येक चरण में क्रमशः दो नगण, एक मगण दो मगण हो यति और सात वर्गों पर हो। आठ १२. शिखरिणी "रसै रुद्रैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी ११/९१ प्रत्येक चरण में क्रमशः यगण, मगण, नगण, सगण, मगण, लघु और गुरु हो तथा छ: और ग्यारह पर यति हो। १३. "जसौ जसयला वसुग्रहयतिश्च पृथ्वी गुरुः" ११/९२ १३७
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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