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पञ्चम परिसद : जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष
एवं दोष EिS
सातवें पर यति हो।
५. रथोदृता
"रान्नराविह रथोद्धता लगौ" ११/३९
जिस पाद में रगण, मगण, रगण लघु गुरु हो पादान्तेयतिः।
६. वेशस्यम्
'जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ' ११/४७
जिस पद्य के प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, तगण, जगण और रगण हो उसे वंशस्थ कहते है पादान्त में यति होती है।
७. द्रुतविलम्वित
'द्रुतविलम्बितमाह नभौ भरौं' ११/५० प्रत्येक चरण में क्रमशः एक नगण, दो भगण अन्त में रगण हो तथा पादान्त में यति हो। इसे सुन्दरी भी कहते है। ८. वैश्वदेवी
"पञ्चाश्चैश्छिन्ना वैश्वदेवी ममौ यौ" ११/६३ जिसके प्रत्येक चरण में क्रमश: दो भगण और दो यगण हो यति और सात वर्णो पर हो।
पांच
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