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________________ पञ्चम पारितोद: जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष। इसमें प्रयुक्त सभी छन्द वर्णसमवृत्त है। प्रमुख छन्द है। १. इन्द्रवज्रा "स्यादिन्द्रवज्रा यदितौ जगौ गः" ११/३० प्रत्येक चरण में दो तगण, एक जगण, और दो गुरु हो उसे इन्द्रवज्रा कहते है। २. उपेन्द्रवज्रा "उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ" ११/३१ वृत्तरत्नाकर प्रत्येक चरण में जगण, तगण, जगण, दो गुरु हो। ३. उपजाति "अनन्तरोदीरतलक्ष्मभाजौ पादौयदीयावुपजातयस्ताः। इथं किलान्यास्वपि मिश्रितासु स्मरन्ति जातिष्विदमेव नाम।। ११/३२ जिस पद्य का कोई चरण अभी कहे हुए इन्द्रवज्रा के लक्षण द्वारा तथा कोई चरण उपेन्द्रवज्रा के लक्षण द्वारा बना हो उसे उपजाति छन्द कहते है। ४. शालिनी "शालिन्युक्ताम्तौ तगौ गोब्धिलौकैः"-११/३५ प्रत्येक चरण में मगण, तगण, तगण, गुरु, गुरु हो तथा चौथे और १३५
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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