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________________ पञ्चम.परिटछेद: जैनकुमारसम्भव में रस, छन्द, अलङ्कार, गुण एवं दोष प्रत्येक चरण में क्रमशः जगण, सगण, पुनः जगण, सगण, यगण, एक लघु और अन्त में एक गुरु हो तथा आठ और नौ वर्णों पर यति। १४. हरिणी रसयुगध्यै, न्सौ नौ स्लौ गो यदाहरिणी तदा- ११/९४ ___ प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु यति छ:, चार और सात पर हो। १५. "मन्दाक्रान्ता जलधिबडगम्भी न तौ ताद्गुरुचेत्" ११/९५ प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, भगण, नगण दो तगण और दो गुरु हो यति चार, छ: और सात वर्गों पर हो। १६. शार्दूलविक्रीडित ___ सूर्याश्चैर्मसजस्तताः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् ११/९९ प्रतिचरण में क्रमशः मगण, सगण, जगण, सगण, दो तगण, एक गुरु यति वारह और सात पर हो १७. स्त्रग्धरा "म्रभ्नैर्यानां त्रयेण, त्रिमुनियतियुता, स्रग्धरा कीर्तितेयम्" ११/१०३ और प्रतिचरण में क्रमशः मगण, रगण, भगण, नगण तथा तीन यगण यति सात-सात वर्णो पर हो।
SR No.010493
Book TitleJain Kumar sambhava ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShyam Bahadur Dixit
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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