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चतुर्थ समिट : पात्रो का विवेचन
नायिका के अन्तर्गत रखा जा सकता है।
चौथे सर्ग में देवांगनाओं द्वारा विवाह कार्यक्रम सम्बन्धित परस्पर वार्ता के उपरान्त तथैव क्रियान्वित होता हुआ लौकिक विधि-विधान से विवाह सम्पन्न होता है और पाँचवे सर्ग के प्रारम्भ में कन्या का हाथ वर (ऋषभदेव) के हाँथ में प्रदान कर दिया जाता है।
वज्रिणा द्रुतमयोजि कराभ्यं, कन्ययोरथकरः करुणाब्धेः।
तस्य हृत्कलयितुं सकलाङ्गा-लिंगनेऽपि किलकौतुकिनेव।।१४ कन्या-विवाह अवसर पर अनेक देवताओं द्वारा कन्या को दान दिया जाता है यथा इन्द्राणी द्वारा स्वर्ण कलश अद्भुत वस्त्रादि को प्रदान किया जाता है
"एणदृग्द्वमुदस्य मधोनी, वासवश्च....कांचन कुंभाम्।१९
वह सुमंगला पतिव्रत को धारण करने वाली, मोक्षकामी लौकिक काम प्रवृत्ति से विमुख एवं अलौकिक काम प्रवृत्ति वाली, है जिसके साथ
के उपार्जित भगवान ऋषभदेव पूर्वजन्म, भोगस्वरूप अनासक्त भाव से भोग क्रिया में संलग्न हुए
"भोगाईकर्मध्रुववेद्यमन्य-जन्मार्जितं स्वं स विभुर्विवुध्य। मुक्त्येककामोंऽप्युचितोपचारै-रभुङ्क्त ताभ्यां विषयानसक्तः"।।२०
विभिन्न प्रकार रति-विलास करने के उपरान्त सुमंगला गर्भधारण करती
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