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चतुर्थ सहिद : पात्रो का विवेचन)
"कौमारकेलिकलनाभिरमुष्य पूर्व-लक्षाः षडेकलवतां नयतः सुखाभिः। आद्या प्रिया गरभमेणदृशामभीष्टं, भर्तुः प्रसादमविनश्वर माससाद"।।२९
अपने स्फठिक भवन में निवास करती हुई सुमंगला एक दिन निद्रावस्था में चौदह प्रकार के स्वप्नों का दर्शन करती है। जो क्रमशः इस प्रकार है- यमराज के समान हाँथी, कैलास के समान सींग वाला वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, अतुलनीय पुष्पमाला, चांदनी से युक्त मुख में प्रवेश करता हुआ चन्द्रमा, हृदय रुपी कमल को विकसित करता हुआ सूर्य, ध्वज, कुम्भ, पद्म-सरोवर, सागर, आकाश में स्थित देवविमान, दुर्लभ रत्न राशि, कान्तियुक्त अग्नि ये चौदह स्वप्न देखे गये। जो इस प्रकार वर्णित हैं
दन्त दंड से सुशोभित उठे हुए शुण्डा दण्ड के कारण उन्नत अत्यधिक भार के कारण पृथ्वी के भंग हो जाने के भय से युक्त ऐस मन्द गमन करने वाले गण्डशैल से स्पर्धा करने वाले कपूर के समान श्वेत कुम्भस्थल को धारण करने वाले, मद की गन्ध से आकर्षित भ्रमरों वाले श्रेष्ठ गजराज को उस सुमंगला ने देखा उस शौभाग्यशालिनी सुमंगला ने गर्जना करते हुए वलशाली पवित्रपूण्य को मानों प्राप्त करते हुए चारों चरणों की चारूता वाले नदी को रोकने की सामर्थ्य वाले, तट पर मिट्टी उत्खात् की लीला वाले कैलाश के समान मानों शृंग वाले कूवड़ से युक्त उस वृषभ को