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________________ २३ व्याकरणीय सूत्र में आदि शब्द की अवयव वाचकता सिद्ध है] । अथवा जन्म आदि सारे भाव विकार आदि शब्द से गृहीत हैं [इस प्रकार आदि शब्द प्रभृति अर्थ में मान्य है], यहाँ-"जन्म च आदि च" ऐसा एकवद् भाव (समाहार द्वन्द्व) होगा। इसमें आदि शब्द धर्मवाची है और वह अपने सम्बन्धी को लक्षित करता है [जायते अस्ति वर्धते विपरिणमते अपक्षीयते नश्यति इतीमे भावविकाराः], जन्म और जन्म सम्बन्धी अस्ति आदि सभी अपेक्षित हैं, उत्पत्ति शब्द के स्पष्ट उल्लेख से ज्ञात होता है कि जन्मादि शब्द अन्यान्य सभी भावविकारों को उपलक्षित करता है। अथवा-जन्म की अनादिता माननी चाहिए, उसके आधार की कोई पूर्व स्थिति नहीं होती (यह असत्कार्य वादियों का मत है)। जन्म के अतिरिक्त अन्य अस्ति आदि भाव विकार ही आदि शब्द से परिलक्षित हैं, उन सबके आधार पूर्व स्थित रहते हैं । अथवा गमन और प्रवेश भेद से "जन्म हैं आदि में जिनके" ऐसा जात्यपेक्षित एकवचन समास भी हो सकता है । अर्थात् ब्रह्म के सकाश से ही जन्म आदि विकार होते हैं, “यतो वा इमानि" इत्यादि में ब्रह्म के सकाश से जन्मादि का वर्णन भी मिलता है। अथवा-इस कुसृष्टि से क्या प्रयोजन ? यह अर्थ अधिक समीचीन है कि आदि आकाश का जन्म है जिससे, "तस्माद् वा एतस्माद् आकाशः संभूतः" इत्यादि में प्राकाश के जन्म का स्पष्ट उल्लेख भी है । "ब्रह्मविदाप्नोति परम्" इस फल श्र ति का इस भाव में सम्बन्ध भी है । शास्त्र का वास्तविकं अर्थ एक ही स्थल पर सन्नद्ध होता है, प्रकारान्तर से कहे हुए वाक्य भी उक्त अर्य के ही द्योतक होते हैं । “यतो वा इमानि" इत्यादि वाक्य में अग्नि-विस्फुलिंग की तरह सारी सृष्टि का उद्भव ब्रह्म से ही दिखलाया गया है । जन्माद्यस्य प्रादि सूत्र में सृष्टि के क्रम विशेष का ही वर्णन है । इस आदि शब्द से सृष्टि के सारे ही प्रकार कहे गए हैं, यही मानना चाहिए । ब्रह्म विचार के प्रसङ्ग में ब्रह्म का ही अधिकृत रूप से विचार होना चाहिए अतः उक्त सूत्र में ब्रह्म विषयक प्रसङ्ग को ही उपस्थित किया गया है । उक्त विषय का अध्याहार मात्र नहीं है। ... भाष्यकार सूत्र के लक्षण बोधक अंश की व्याख्या करके अब प्रमाण बोधक अंश की व्याख्या करते हैं -
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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