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________________ २२ ... ऐसा नहीं है कि अन्य के कर्तृत्व को ब्रह्म में आरोपित किया गया हो, यदि ऐसा मानगे तो, जगत् कर्तृत्व अन्य का ही सिद्ध होगा। वह दूसरा कौन है ? प्रकृति में तो कर्तृत्व शक्ति नहीं हो सकती, आगे सूत्रकार इसका निराकरण करेंगे । जीवों में भी कत्तु त्व संभव नहीं है क्योंकि वे स्वयं दैवाधीन हैं । और न इन्द्र आदि किन्हीं औरों में ही कर्तृत्व सामर्थ्य है, क्योंकि वे भी प्रकृति और जीव की तरह सान्त और परतन्त्र हैं, इसलिए कत्तृत्व तो ब्रह्मगत ही मानना पड़ेगा। इसी प्रकार अलौकिक भोक्त त्व भी ब्रह्म का मानना पड़ेगा। किसी श्र ति में ब्रह्म के कर्तृत्व का निषेध भी नहीं है । जिन श्र तियों से निषेधाभास की कल्पना की जाती है वह लौकिक का ही निषेध है। "ब्रह्मविदा-नोति परम्" इत्यादि फल वाक्यों में कर्तृत्व आदि धर्मों के गुणों का उपसंहार करना चाहिए [अर्थात् "ब्रह्म की कर्तृत्व आदि महिमा को जानने वाला ही परमात्मा को प्राप्त करता है" ऐसा अर्थ करना चाहिए। तथाचायं सूत्रार्थः । जन्मादिर्येषामित्यवयवसमासादतद्गुणसं विज्ञानो बहुव्रीहिः । अथवा जन्म प्रभृति सर्व भावविकारा आदि शब्देन गृहान्ते । तथा च जन्म च.. आदिश्चेत्येकवद्भावः। आदि शब्दश्च धर्मवाची । स च स्वसंबंधिनं लक्षयति । तस्योभयसापेक्षत्वादुत्पत्तेविद्यमानत्वादन्यानेव भावविकारानुपलक्षयतीत्यादि शब्देनान्ये. भावविकाराः । अथवा जन्मनो नादित्वम्, तदाधारस्य पूर्वमविद्यमानत्वात् । अन्ये त्वादिमंतः तदाधारस्य पूर्व विद्यमानत्वात् अत श्रादि शब्दः स्वाधार सद्धर्मवाची तद्धर्माणामुपलक्षकः । अथवा . ममनप्रवेशयोर्भेदाज्जन्म आदिर्येषामिति । जात्यपेक्षयकवचनम् । जन्म.तु. अनत्वात् सिद्धम् । अथवा किमनया कुसृष्ट्या । जन्म प्राद्यस्य आकाशस्यं यत इति । “तस्माद् वा. एतस्मादात्मन आकाशः संभूतः” इत्येव विचार्यते। फलसंबंधित्वात् । तेनैकत्र सिद्धः शास्त्रार्थः प्रकारान्तरेऽपि । "यतो वा इमानि भूतानि" इत्यत्र विस्फुलिंगवत्. सर्वोत्पत्तिः। अत्र तु क्रमेणेति विशेषः । एतेन सर्व एव प्रकाराः सूचिता वेदितव्याः । ब्रह्मविचारे ब्रह्मणोऽप्यधिकृतत्वाद् ब्रह्मत्यायाति न त्वध्याहारः । :: कर्तृत्व आदि धर्मविशिष्टः ब्रह्म: ही उक्त सूत्र का वक्ष्यमाण है। इस दृष्टि से सूत्र का अर्थ निम्न प्रकार होगा-"जन्मादि हैं जिसमें", इसमें अवयव समास से अतद्गुण संविज्ञान बहुव्रीहि है ["सर्वादीनि सर्वनामाजिइस
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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