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________________ वाक्यानि सूत्रैरुदाहृत्य विचार्यन्ते तस्माजन्मादिसूत्रं नानुमानोपन्यासार्थ, किन्तहि वेदान्त वाक्य प्रदर्शनार्थम (शां. भा. ११११२) प्रस्तुत प्रसंग में द्वत या अद्वैत से सम्बन्धित न तो सारे उपनिषद् वाक्यों का विचार सम्भव है और न अभोष्ट ही। यहाँ तो केवल शुद्धाद्वैत और उसकी पृष्ठभूमि के बारे में चर्चा करनी है। शुद्धात भी कोई मौलिक दर्शन नहीं है, उपनिषद् के विभिन्न वाक्यों को समन्वित करने का सहज प्रयास मात्र है, इसे सहज कहने का आधार वही है जो श्री शंकराचार्य ने सांख्यदर्शन की आलोचना में प्रस्तुत किया है वे औपनिषद् दर्शनों का आधार बतलाते हुए कहते हैं- “अपिच क्वचिद् गौणः शब्दो दृष्ट इति, न चैतावता शब्दप्रमाण केऽर्थ गौणी कल्पना न्याय्या सर्वत्र अनाश्वास प्रसंगात् ॥ (शा. भा. १३११७) अर्थात् जैसे हमारे दैनिक वाकव्यवहार या काब्य में भाषागत गौण प्रयोग होते हैं (हम किसी वीर को सिंह या किसी डरपोक को गीदड़ कहते हैं) वैसे ही औपनिषद पदार्थ जो कि बिना उपनिषद के सिद्ध नहीं हो सकते उनको उक्त गौणी पद्धति के आधार पर मनचाहा अर्थ करना उचित नहीं है श्री बल्लभाचार्य भी इससे सहमत हैं, वे भी कहते हैं ये धातु शब्दाःयत्रार्थे उपदेशे प्रकीर्तिताः । तथैवार्थो वेदराशेः कर्तव्यः नान्यथा क्वचित् ।। अर्थात्-जिन-धातु क्रियापदों का एवं संज्ञावाचक शब्दों का जो अर्थ निरुक्त ब्याकरण आदि द्वारा किया गया है वही अर्थ हमें शास्त्रों को ब्याख्या में लेना चाहिए। लाक्षणिक या गौण प्रयोग मानने एवं तार्किक चातुर्य से स्पष्ट अर्थ को असम्भव कर दिखलाने की रीति से शास्त्रों की ब्याख्या मौलिक हो सकती है, प्रामाणिक नहीं । शास्त्र के किन्हीं दो बचनो में संगति नहीं बैठती तो तार्किक चातुर्य प्रदर्शन की आवश्यकता नहीं है, अपितु दोनों का समान महत्व स्वीकारते हुए, यथार्थ को परस्पर विरोधी धर्मों का आधार मानकर संगति बैठानी चाहिए। एक वाक्य को मुख्य या बाधक एवं दूसरे वाक्य को गौण या बाध्य मानकर ब्याख्या करना शब्द्वैकगम्य पदार्थ की शकानुसार संभव ब्याख्या का उल्लंघन करना शास्त्रापराध है । स्वयं सूत्रकार "तर्काप्रतिष्ठानात्", कहते हुए विचार्य विषयवस्तु में तर्क के समर्थन या विरोध को नहीं स्वीकारते ।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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