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________________ होता है, जब कि-उक्त प्रसंग में “तेषामिहनपुनरावृत्ति" ऐसा स्पष्ट उल्लेख है अतः यह प्रसंग परब्रह्म लोक से ही संबंधित निश्चित होता है। इसका पूर्वपक्ष वाले उत्तर देते हैं कि कार्यात्यये तदध्यक्षणेसहातः परमऽभिधानात् ।४।३।११॥ कल्प समाप्तौ कार्यस्य ब्रह्मलोकस्य नाशे सति तदध्यक्षेण चतुमुखेन ब्रह्मणा सहातो ब्रह्मणः सकाशात् परमीश्वरं प्राप्नोत्यतोऽपुनरावृत्तिश्रुतिन विरुद्धयते । अत्र प्रमाणमाह-अभिधानादिति । श्रुतौ तथाऽभिधानादित्यर्थः । सा तु"वेदान्त विज्ञान सुनिश्चितार्थाः संन्यासयोगादयतय. शुद्धसत्वाः । ते ब्रह्मलोके तु परान्तकाले पराऽमृतात् परिमुच्यन्ति सर्वे ।" इति, परान्त काल इत्यत्र पर शब्देन ब्रह्मणः पूर्णमायुरुच्यते ।। ___ कल्प की समाप्ति में कार्य ब्रह्मलोक का नाश हो जाने पर उसके अध्यक्ष चतुर्मुख ब्रह्मा के साथ उस लोक के सभी जीव उनके सकाश से परमेश्वर की प्राप्ति करते हैं, इस प्रकार अपुनरावृत्ति वाली श्रुति सुसंगत ही है । श्रुति में ऐसा स्पष्ट उल्लेख भी है जैसे कि-"वेदांत के सम्यक् ज्ञान और संन्यास से संयत अन्तःकरण वाले शुद्ध चित्त जीव, ब्रह्मलोक की समाप्ति पर मुक्त होकर अमृतत्व प्राप्त कर लेते हैं।" परान्त काल पद में पर शब्द से, ब्रह्मा को पूर्ण आयु का उल्लेख है। उक्तेऽर्थे श्रुति प्रमाणत्वेनोक्त्वा स्मृतिमप्याहउक्त कथन में श्रुति का प्रमाण देकर स्मृति का भी देते हैंस्मृतेश्च ।४।३॥१२॥ "ब्रह्मणा सह ते सर्वे सम्प्राप्त प्रतिसंचरे । परस्यान्ते कृतात्मानः प्रविशन्ति परं पदम् ॥” इति स्मृत्यापि स एवार्थः प्रतिपाद्यते । "प्रत्येक कल्प में वे सब ब्रह्मलोक के नष्ट हो जाने पर, ब्रह्मा के साथ परम पद में प्रवेश करते हैं।" यह स्मृति वाक्य भी उसी की पुष्टि कर रहा है। अत्र सिद्धान्तमाहइस पर सिद्धान्त रूप से सूत्रकार जैमिनि का मत प्रस्तुत करते हैं
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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