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________________ ( ६१० ) इसीलिए उस वैद्युत पुरुष को मानस कहा गया है, अर्थात् जब भगवान के मन में ऐसा विचार होता है कि इसे मुझे प्राप्त कराओ, तभी वह भगवद् विचार को जानने वाला दिव्य पुरुष जीव को भगवत्प्राप्ति कराता है। छांदोग्येस्वमानव इति पढ्यते । तच्चालौकिकत्वं तदप्युक्त रूपमेवेति न काश्चिद् विशेषः। वाजसनेयके ब्रह्मलोकानामयतीति पठ्यते । छांदोग्येतु ब्रह्मेति । तत्रायंभावः, भक्तं तु वैकुण्ठलोकनयति ते बहुविधा इति ब्रह्मलोकानित्युक्तम् । ज्ञानमार्गीयंत्वक्षरब्रह्म प्रापयति इति ब्रह्मेत्युक्तम् । अतएवोभय व्यामोह उक्त आचार्येण । छांदोग्य में दिव्य पुरुष को अमानव कहा गया है जो कि अलौकिकता का ही सूचक है, वैद्युत रूप ही है कोई भेद नहीं है । वाजसनेय संहिता में "ब्रह्मलोकान्नयति" ऐसा बहुवचन प्रयोग किया गया है जब कि-छांदोग्य में केवल "ब्रह्म" ऐसा एकवचन प्रयोग है । उसका तात्पर्य यह है कि-मर्यादा मार्गीय भक्त को वैकुण्ठ ले जाते हैं, वैकुण्ठ अनेक प्रकार के हैं । अतः बहुवचन का प्रयोग है । ज्ञानमार्गीय को अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति कराते हैं, इसलिए एकवचन का प्रयोग है । इसीलिए आचार्य बादरायण ने उभय व्यामोह कहा है। ३ अधिकरण : अत्र सिद्धान्तदाढ्यार्थमुक्तम हस्तपिहितमिव कृत्या बादरिमतं पूर्वपक्षत्वेनात अब सिद्धान्त की पुष्टि के लिए उक्त विषय को छिपाकर पूर्वपक्ष रूप से . बादरिमत को प्रस्तुत करते हैं कार्यबादरिरस्य गत्युपपत्तः ।४।३।। "स एतान् ब्रह्मगमयति" इत्यत्र ब्रह्मपदेनाविकृतं परमेव प्रमोच्यते ? उत् कार्यरूपो ब्रह्मलोक ? इति भवति संशयः परस्य व्यापकत्वेन देशविशेषगमयित्रोरनपेक्षितयोरुक्तेः कार्यरूपं एव स ब्रह्मपदेनोच्यत इति बादरिराचार्योमन्यते । कृतः ? अस्य गत्युपपत्तेः। तस्य परिच्छिन्नत्वेन तस्थितिदेशं प्रत्ययस्य गन्तुगतरुपपत्तरित्यर्थः। . संशय होता है कि-"म एतान् ब्रह्मगमयति" में बह्मपद से अविकृत परमब्रह्म का उल्लेख है अथवा कार्यरूप ब्रह्मलोक का। बादरि आचार्य
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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