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( ६०१ ) ननु विधुतो वरुणादिलोकप्राप्त्यनन्तरं यस्य ब्रह्मप्राप्तिस्तस्य · तल्लोकसंबंधी ब्रह्मप्रापकः पुरुषोऽस्त्युत त स्वत एवतत्प्राप्नोतीतिसंशय उत्तरं पठति
विद्युत से वरुण आदि लोकों को प्राप्त करने के बाद जिसे ब्रह्म प्राप्ति होती है, उसे उस लोक से सम्बन्धी पुरुष ब्रह्म की प्राप्ति कराता है अथवा वह स्वयं प्राप्त हो जाता है, इस संशय का उत्तर देते हैं
पैच तेनैव तस्तच्छनुतेः ।४।३।७॥
न हि ब्रह्मप्राप्तिविद्युल्लोकसंबंधिपुरुषसामर्थ्य नोच्यते, किन्तु ब्रह्मसंबंधितत्सामर्थ्येन । तथा च यतएव लोकात् तत्प्राप्तिस्ततो ब्रह्मसंबंधिपुरुषादेव । एवं सति विद्युल्लोकान्तत्प्राप्तौ यो ब्रह्मसंबंधो पुरुषः प्रापक उक्तस्तेनैव ततो वरुणादिलोकेभ्योऽपि ब्रह्मप्राप्तिस्तत्रहेतुमाह-तच्छनुतेः, "तान् वैद्युतात् पुरुषो मानस एत्य ब्रह्मलोकानामयति" इति श्रुतेः । अत्र "एत्य' इति वचनाद् यत एव लोकाद् ब्रह्मप्राप्तिर्भवित्री ततैवागत्य ब्रह्मप्रापयति इति गम्यते । श्रुतौ वैद्युतं लोकमामत्य तस्माद् ब्रह्मलोकानामयति इत्युक्तमिति स पुरुषो वैद्युत इत्युच्यते न तु तल्लोकवासित्वेन । तथा सति एत्य इति न वदेत् तत् एव ब्रह्मप्रापेण ।
ब्रह्म प्राप्ति विद्युत लोक के पुरुष के सामर्थ्य से नहीं होती किन्तु ब्रह्म संबंधी पुरुष के सामर्थ्य से होती है। जिस लोक से ब्रह्म प्राप्ति होती है वह ब्रह्म संबंधी पुरुष से ही होती है। विद्युत लोक से, ब्रह्म प्राप्ति में जिस ब्रह्म संबंधी पुरुष को प्रापक बतलाया गया है। "वह मानस वैद्युत पुरुष आकर ब्रह्मलोक ले जाता है" इस श्रुति से उक्त कथन पुष्ट हो जाता है। इस वाक्य में 'एत्य' पद से बतलाया गया है कि जिस लोक से ब्रह्म प्राप्ति होती है उसी लोक से आकर ले जाकर ब्रह्म प्राप्ति कराता है। वाक्य में जो "वैद्युतलोक से आकर ब्रह्मलोकों को अर्थात् विद्युत का-सा प्रकाशवान होता है, न कि विद्युत लोकवासी होता है । यदि विद्युत लोकवासी होता तो 'एत्य' ऐसा न कह कर "तत एव" ऐसा कहते ।
अतएव मानस इत्युक्तः, यदैवं भगवन्मनसि भवत्यर्थ नं. मां प्रापयत्विति तदैव प्रापयति इति तथा।