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________________ ( ५६३. ) ऐसा ही स्मृति वाक्य भी है-"अजुन ! जैसे कि-इंधन को प्रज्वलित अग्नि भस्म करता है वैसे ही ज्ञानाग्नि समस्त कर्मों को भस्मसात कर देता है।" जो अश्वमेध करता है वह पापों से मुक्त हो जाता है ब्रह्महत्या से मुक्त हो जाता है ।" इत्यादि श्रुतिसम्मत भोग मोक्ष को बात तो आपको भी मान्य होगी, इमको जानकर तो आप भोग नियम की बात कह नहीं सकते । इसी प्रकार ज्ञान से भी बिना भोग के ही कर्म क्षय हो जाता है। बिना भोगे कर्म क्षय नहीं हो सकता ये मत इसी आधार पर निरस्त हो जाता है । अन्योन्याश्रय की बात भी लागू नहीं होती । अनादि अविद्या जन्य संसार वासनात्मिका भोग शृखला, गुरु शरणागति पूर्वक आचरित श्रवण मनन विधि उपासनादि रूप ज्ञान सामग्री से ही नष्ट होती है । अविद्या परं ज्ञान से नष्ट होती है, ऐसी कोई खास बात नहीं है । कर्म से ज्ञान सामग्री बलिष्ठ होती है, अतः कर्म उसमें प्रतिबंधक नहीं हो पाता । ज्ञान के द्वारा कर्मनाश को बतलाने वाली श्रुति और स्मृति तो आपको भी स्वीकारनी चाहिए, यही बात सूत्रकार ने तद्व्यपदेशात् पद से बतलाई है। इतरस्याप्येवमसंश्लेषः पाते तु ।४।१।१४॥ पापस्य शास्त्र विरोधित्वेन शास्त्रीय ज्ञानेन ममं विरोधोभवतु नाम । धर्मस्यातथात्वेनाविरोध एवेत्याशंकानिरासाय पूर्वन्यायातिदेशमाह । इतरस्य पुण्यस्याप्येवं, पूर्वस्यनाश उत्तरस्याश्लेष इत्यर्थः। अविदेशाद्धेतुरपि स एव ज्ञेयः । तथाहि-उभे उ हैवेष एते तरति" क्षीयन्ते चास्य कर्माणि “इति सामान्यवचनात्" ज्ञानाग्नि सर्वकर्माणि" इति स्मृतौ सर्वशब्दाच्च तथा । अथेदं शंक्यते-मर्यादामार्गीयत्वात् ज्ञानानन्तरं भरतवत संगदोषेण भगवद्भावात् च्युतौ संगजदोषोत्पत्तिवदने विहिननिषिद्धकर्मणोरप्युत्पत्तिर्वक्त शक्येति ज्ञानस्य न सर्वात्मना कर्म विरोधित्वमिति । तत्रनिर्णयम"ह-पाते, भक्तिमार्गे भगवद्भावाच्च्युतिः पात इत्युच्यते । तुरप्यर्थे । अपिशब्दे वाच्ये व्यवच्छेदार्थक तुशब्दोक्त्या अस्मिन् मार्गे पापस्य व्यवच्छेद एव, “नहि कहिचिन्मतपरा" इति वाक्यात परंतु मर्यादा मार्गीयत्वात् प्रारब्धभोगार्थ प्रभुश्चेत्तथा करोति तदभावे पूर्णे सति तद्भोगोऽसंभावित इति तदैवं भवतीति व्यासाभिप्रायो ज्ञायते । पाप शास्त्र विरोधी तत्त्व है, अतः शास्त्रीय ज्ञान के साथ उसका विरोध होना चाहिए धर्म शास्त्र सम्मत तत्त्व है, उसके साथ उसका कोई विरोध नहीं होना चाहिए, इस संशय का निराकरण भी पूर्व नियमानुसार ही करते हुए
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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