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________________ ( ५४४ ) अथवा श्रुतौ तदवस्थावघृतेर्हेतोरस्माकमपि तदवस्थावधृतियतोऽतः . 'फलाऽनियमनिश्चयोऽपीत्यर्थः । एवं सति मुक्तिपर्यन्तं साधनं भगवद्भाव इति निर्णयः संपन्नः। "उसके मोक्ष में तभी तक की देर है जब तक शरीर नहीं छूटता उसके बाद वह ब्रह्म संपन्न हो जाता है" इस श्रुति में मुक्ति के बाद ब्रह्म संपत्ति बतलाई गई है, उस मुक्ति को, पुरुषोत्तम के साथ लीलानुरसानुभव के अति'रिक्त कुछ और नहीं कह सकते । "नारायण परायण सिद्ध मुक्त पुरुषों में करोड़ों में कोई एक प्रशान्तात्मा होता है" इत्यादि स्मृति वाक्य भी है । मुक्ति का फल मुक्तिरसानुभव है तो, ग्रहस्थ भक्तों को वह प्राप्त होता है या नहीं ? इस संशय पर सूत्रकार कहते हैं कि- उक्त प्रकार के मुक्त जीवों को मुक्ति के फलस्वरूप प्राप्त होने वाला जो भक्तिरसानुभव रूप फल है वह मिले ही ऐसा कोई नियम नहीं है, वह तो भगवदिच्छा के ही अधान होता है, साधन से नहीं मिलता । "वह प्रभु मुक्ति तो दे देते हैं किन्तु भक्तियोग बहुत कठिनता से ही देते हैं" इत्यादि भागवतोवत शुकवाक्य से उक्त मत की पुष्टि होती है । 'न स पुनरावर्त्तते" की जो पुनरावृत्ति की गई है उससे, मुक्ति अवस्था का सार्वदिक निर्धारण सिद्ध होता है । यद्यपि इस प्रकार का मुक्ति फलाभाव का नियम भी आ जाता है, उसके अनियम की बात नही आती फिर भी "तस्य तावदेव चिरं" इत्यादि प्रमाण के साथ “न स पुनरावर्त्तते" श्रुति का 'विरोध भाव है उसके निराकरण के लिए ही अनियम की व्यवस्था की गई है, इस व्यवस्था से दोनों का समाधान हो जाता है। उक्त प्रकार का फल तो कभी-कभी ही भगवान के अत्यनुग्रह से, पुष्टि मार्ग में प्रवेश करने पर ही होता है । इस अपने अभिमत अभिप्राय को प्रकट करने के लिए, अनियम पद “का प्रयोग किया है । इस प्रकार, "न स पुनरावत्त'ते' इति प्रपंच में पुनरावृत्ति का निषेध करती है, उससे अतीत होने की बात नहीं कहती । फल के अनियम की बात निश्चित हो जाने पर.भी श्रुति में उस अवस्था की अवधृति का जो हेतु बतलाया है, वह हमारा अभिमत सिद्धान्त है (अर्थात् पुष्टि मार्ग में सब कुछ ब्रह्मरूप है ऐसी अवधारणा करने पर ही भगवदनुग्रह प्राप्त होता है) इस प्रकार निर्णय होता है कि-मुक्तिपर्यन्त भगवद्भाव की साधना करनी चाहिए। तृतीय अध्याय चतुर्थपाद समाप्त
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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