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________________ ( ५३५ ) हेतुत्वाच्च । ब्रज सीमन्तनीनां प्रभुवचनातिक्रममपि कृत्वा स्वरूपपरिग्रहस्तबलेनैव यत् इत्यात्रेय आचार्यों मनुते । इदमत्राभिप्रेतम्-सर्वात्मभावस्य यद् वलम् तत्तदात्मकस्य प्रभोरेव तस्य चायं स्वभावो यद्न्यन्न रोचते । अतएव ब्रजपरिवृढवदनेन्दुवचनकिरणप्रचार प्रोच्छलत् केवलभावांभोधिवचनवीचयो गोयन्ते-“यहि अंबुजाक्ष तव पादतलमस्प्राक्ष्म तत्प्रभृतिनान्य समक्षंस्थातुं पारयामः" इत्यादयः । अतः त्यागस्तु पृष्ठलग्न इवायातीति न तदर्थ यतनीयमति, विष्ण्ववतारत्वेन पुरुषोत्तमभावस्वरूपज्ञोऽयमिति तथा। . पुष्टि मार्गीय भक्त, भगवत्कृपानुसंधान के आधार पर स्वतः ही वासना का त्याग कर देता है, क्योंकि-भक्तिमार्ग के स्वामी श्री गोकुलेश की प्राप्ति ही फल है, इसलिये गृहत्याग कर बाहर जाना, इस मार्ग की साधना नहीं हैं अतः गृहत्याग नहीं करना चाहिये । इस मार्ग में तो "वे जिसे वरण करते हैं" इस वाक्य पर विचार करना चाहिये । इसके बाद ही दूसरा पाठ आता है" वे प्रभु बलहीन व्यक्ति से प्राप्त नहीं है इसमें भगववरण के बाद भी जीव को कौने से बल की अपेक्षा होगी, इस जिज्ञासा पर, सर्वात्मभाव को ही बल रूप से निर्णय किया गया है । इस बल से, शास्त्रीय मर्यादा का उपमर्दन होता है तथा भगवान वशंगत हो जाते हैं । ब्रज की गोपियों ने शास्त्रीय प्रभु आज्ञा का अतिक्रमण करके, स्वरूप परिग्रह किया और उसी बल से प्रभु प्राप्त की ऐसा आत्रेय आचार्य मानते हैं । इसका अभिप्राय ये हैं कि -सर्वात्म भाव का जो बल है वह सब कुछ प्रभु रूप से देखता सुनता जानता है, उसे और कुछ अच्छा ही नहीं लगता । जैसा कि-ब्रज के स्वामी कृष्ण चन्द्र के मुखार बिन्द को किरणों से उद्वेलित भावसमुद्र की तरंगें गान करती है-"हे कमल नयन । जब से आपके चरण कमलों के दर्शन किये हैं, तब से किसी अन्य के सामने हम ठहर नहीं पाती" इत्यादि । इससे निश्चित होता है कित्याग तो भक्त के पीछे लगा फिरता है उसके लिये प्रयास करना आवश्यक नहीं है । आत्रेय (दत्तात्रेय) भगवान विष्णु के अवतार हैं इसलिये पुरुषोत्तम भाव स्वरूप के ज्ञाता हैं। आत्त्विज्यमित्यौडलोमिस्तस्मैहि परिक्रीयते ।३।४।४४॥ सर्व त्याग पूर्वकं यद् ब हेः प्रभु समीप गमनं भक्तम्य तदात्विज्यमृत्विक कमैं वेत्यौडुलोमिराचार्योमन्यते । तस्यायमभिसंधिः यजमानो हि स्वेष्टसिद्धयर्थमृत्विज आदीवृणुते । प्रकृते च “यमेवैषवृणते' इति श्रुतेस्तस्मादेकाको न
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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