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________________ ( ४८६ ) बात को बतलाने के लिये सूत्रकार सूत्र-- में' फलप्रद न कह कर, पुरुषार्थ पद कहते हैं । सूत्र का व्यासाभिमत दूसरा अर्थ भी ज्ञात होता है इस सूत्र में श्लेषात्मक प्रयोग है। दूसरा अर्थ जैसे-भगवान ही पुरुषार्थ है अतः पद विशिष्ट श्रति वाक्य से ऐसा ही निश्चित होता है, जैसा कि-तैत्तरीय उपनिषद् का पाठ है-"इसके अतिरिक्त कोई दूसरा अणु से अणु और महान से महान् नहीं हैं, यही एक मात्र अव्यक्त अनन्त रूप वाला तम से रहित विश्व में, संवं प्राचीन प्रकाश पुंज है" इत्यादि । शेषत्वात् पुरुषार्थवादो यथाऽन्येष्विति जैमिनिः ।३।४।२॥ विष्णोरिज्यत्वेन कर्म शेषत्वात् तत् स्वरूपज्ञानपूर्वको यागः फलातिशयहेतुरिति तन्माहात्म्यमुच्यत इत्यर्थवाद रूपं तत् । अन्त्र दृष्टान्तमाह-"यथान्येविति", अन्येषु द्रव्यसंस्कारकर्मसु “यस्यपर्णमयोजुहूर्भवति न पापं श्लोकं श्रृणोति यदाक्तेचक्षुरेव भ्रातृव्यस्य वृक्ते यत् प्रयाजानुयाजा इज्यन्ते वर्मवा एतद् प्रज्ञस्य क्रियते वर्म यजमानस्य भ्रातृव्याभिभूत्या" इत्येवं जातीयिका फलश्रुतिरर्थवादस्तद्वदित्यर्थः । जैमिनि कहते हैं कि-विष्णु का जो यज्ञ रूप से वर्णन किया गया है (विष्णुवैयागः) कह कर्म सूचक ही है अर्थात् विष्णु स्वरूप ज्ञान के साथ जो यज्ञ करता है, वह यज्ञ फलातिशय का हेतु होता है, इस दृष्टि से विष्णु के माहात्म्य का विशेष वर्णन किया गया है, जो कि अर्थवाद मात्र है। इस पर दृष्टान्त देते हैं कि-जैसे द्रव्य संस्कार कर्मों में “यस्यपर्णमयोजुहूः भवति न पापं श्लोकं श्र णोति" इत्यादि फलश्रुति अर्थवाद मात्र है वैसे ही उक्त भगवत् परक श्रुतियाँ भी हैं । ननु “तमेव विदित्वा मुनिर्भवनि एतमेव प्रब्राजिनो लोकमीप्सन्तः प्रबजन्ति" एतदनेच "ते ह स्म पुत्रैषणायाश्च वित्तैषणायाश्च लोकैषणायाश्च व्युत्थायाथ भिक्षाचर्य चरंति" इति श्रुतिर्भगवज्ज्ञानवतः सर्वत्यागं वदति, इति न. त्वदुक्तं साधीय इत्युत्तरं पठति (जैमिनिमत पर विवाद) "उस प्रभु को जानकर मुनि हो जाता है" इत्यादि कहकर आगे भी “वे पुत्रैषणा, लोकेषणा और वित्तषणा से उठकर भिक्षाटन करते हुए भ्रमण करते हैं" इत्यादि श्रति भगवद् ज्ञानवान् व्यक्ति के
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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