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________________ ( ४७० ) नहीं करना चाहते, वे स्वर्ग अपवर्ग और नर्क में तुल्य रूप से ही फल को देखदे हैं । वे सालोक्य, साष्टि, समीप्य और सारूप्य दिये जाने पर भी, मेरी सेवा के अतिरिक्त उन्हें नहीं स्वीकारते.।" इत्यादि अनेकों वाक्यों से उक्त तथ्य की पुष्टि होती है। न सामान्यादप्युपलब्धे मृत्युवन्न हि लोकापत्तिः ॥३॥३॥५१॥ ननु “नान्यत् पश्यति" इत्यारम्य सर्वस्य प्रपाठकस्य सर्वात्मभाव निरूपकत्वोक्तिरनुपपन्ना । अतएवात्मपदानां पुरुषोत्तम परत्वोक्तिश्च । यतस्तस्य मुक्तावपि कामाभावः प्रतिपाद्यते । अत्र तु"तस्य सर्वेषु लोकेषुकामाचारो भवति" इति श्रुतिः पठ्यते । एवं सति न तन्निरूपणं अन्त्रेति वा वाच्यम् तद्भावतोऽप्यन्य कामवत्त्वमिति वा । द्वितीयस्योक्तप्रमाण पराहतत्वेनाद्यपक्ष एवाश्रयणीय इति पूर्वपक्ष निरस्यति । नेति-तन्नहेतुमाह-सामान्यदप्युपलब्धेः इति । तत, समानधर्म योगादपि तत्प्रयोगः श्रुतावुपलभ्यतेऽनेकशो यतः । प्रकृतेऽपि विविधानां लोकानां विविध सुख प्रधानत्वाद् भगवत्संबंधिषु सर्वेषु सुखेषु कामचारो भवतीति श्रुतेरर्थो ज्ञेयः। "नान्यत् पश्यति" से लेकर सम्पूर्ण प्रपाठक को सर्वात्मभाव निरूपक उक्ति सही रूप से नहीं बन पाई है, इसलिए आत्म पदों की पुरूषोत्तम परक उक्ति भी नहीं बन पाई है। इसलिए मुक्त होने पर भी उनके सकाम भाव का प्रतिपादन किया गया है-"सभी लोकों में उनकी कामचार गति होती है" इत्यादि श्रुति में स्पष्टोल्लेख है । उनका निरूपण उक्त प्रकरण में नहीं है या तो ये कहें, या सर्वात्मभाव वाले होकर भी उन्हें अन्य कामनाओं को अभिलाषा रहती है, ऐसा माने द्वितीय बात तो "सर्वेषु लोकेषु" आदि प्रमाण से ही कट जाती है, इसलिए पहली बात ही माननी चाहिए, इस मत का निराकरण करते हुए सूत्रकार कहते हैं-नहीं; उनके समान धर्म योग से भी, श्रुति में, उनका प्रयोग बहुलता से मिलता है। इसलिए उनके (सर्वात्मभाव वाले भक्तों के लिए भी, विविध सुखों वाले विभिन्न लोकों की प्राप्ति, भगवत्संबंधी सुखों में कामचार होता है इस भाव से कहा गया है। ननु यथाश्रु त एवार्थोऽस्तुतत्राह-"न हि लोकापत्ति" इति, सर्वात्मभाववत् इति प्रकरणाद"नान्यत पश्यति,, इत्यादि धर्मविशिष्टस्यात्मनः प्राणादि सर्व
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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