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________________ ( ३९६ ) ब्रह्म के समान लीला भी व्यापक हैं अतः उनमें स्वाभाविक अभिन्नता है, इसलिए एक भक्त के लिए जैसे, ब्रह्म के साथ लीला पदार्थ प्रकट होते हैं, वैसे ही सभी समान भक्तों के लिए प्रकट होते हैं, ऐसा सुसंगत मत है । ननु व्यापकत्ववत् पूर्णानन्देश्वर्यवीर्यादयोऽपि धर्मास्तेषु प्रतीताभवेयुः | न चैवमस्ति । दुःख संभवनायां प्रभुमेव प्रार्थयंति यतः । एवं सति व्यापकत्वमपि न वत्व ं शक्यम् तुल्यत्वादत उत्तरं पठति - जैसे कि परमात्मा व्यापक हैं वैसे ही परमात्मा के पूर्ण आनन्द ऐश्वर्य वीर्यं आदि धर्मों की भी प्रतीति होनी चाहिये पर नहीं होती । दुःखी होने पर ही भक्त प्रभू की प्रार्थना करते हैं। इसलिये धर्मों की व्यापकता कहना भी कठिन है ? इस शंका का उत्तर देते हैं आनन्दादयः प्रधानस्य |३३|११|| पूर्णानन्देश्वर्यादयः प्रधानस्य र्धामणो ब्रह्मण एव धर्माः । लीला पदार्थास्तु ब्रह्म धर्मत्वेन व्यापका उच्यन्ते । व्यापकस्य धर्मिणोऽनागंतुक धर्मस्य व्यापकत्व नियमात् । नहि घर्मेषु पूर्णानन्दत्वादयः संभवति । धर्मित्वापत्या धर्मत्वव्याहतः । अत एवाच प्रधानपदमुपात्त, धर्मगुणभावेन लीला पदार्थाना माविर्भाव इति ज्ञापयितुम् पूर्णानन्द ऐश्वर्य आदि प्रधान धर्मी ब्रह्म के ही धर्म हैं । लीला पदार्थ ब्रह्म और भक्त दोनों के लिये हैं । किन्तु ब्रह्म के धर्म होने में उन्हें व्यापक कहा गया है । व्यापक धर्मी के अनागंतुक धर्म की व्यापकता स्वभावतः ठीक है । लीला धर्मो में पूर्णानन्द आदि की गणना नहीं कर सकते । यदि ऐसा करेगें तो, धर्मित्व की हानि में धर्मत्व की भी हानि हो जायगी । इसलिये इन्हें प्रधान धर्मी ब्रह्म के ही धर्म कहा गया है ये नित्य धर्म हैं । लीला पदार्थों में धर्म के गुण विद्यमान हैं इसलिए उनका आविर्भाव कहा गया है । प्रियशिरस्त्वाद्यप्राप्तिरुपचयापचयौहिभेदे | ३ | ३|१२ ॥ नन्पासकस्य प्रियत्वादिप्रकारज्ञानक्रममादाय प्रियत्वादि धर्माणां शिरस्त्वादि ज्ञानस्यरूपत्वमानंदमयाधिकरणे निरूपितमिति लीलास्थानामपि प्रियत्वादि ज्ञानस्य सत्वादत्रापि स्वरूपोपासकस्य प्रियशिरस्त्वादि धर्माणां उपसंहारः कार्य इत्याशंक्य परिहरति । प्रियशिरस्त्वाद्य प्राप्तिरिति । चितशुद्धितारतम्य
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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